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नहीं होते, यह नहीं सहा जाता। तुम चकित होओगे, यह बात उलटी लगती है। क्योंकि पत्नी को प्रसन्न होना चाहिए। लेकिन तुम मनुष्य के मनोविज्ञान को समझो। वह कहने लगी, मुझे बड़ी हैरानी होती है, बड़ी बेचैनी होती है; वे पहले नाराज होते थे तो कम से कम स्वाभाविक तो लगते थे। अब वे बिलकुल बुद्ध बने बैठे रहते हैं। हम सिर पीटे ले रहे हैं, वे बुद्ध बने बैठे हैं। इधर हम उबले जा रहे हैं, उन पर कोई परिणाम नहीं है। यह थोड़ी अमानवीय मालूम होती है बात और ऐसा लगता है, प्रेम खो गया। अब क्रोध भी नहीं होता तो प्रेम क्या खाक होगा!
पत्नी कहने लगी, अब प्रेम कैसे होगा? वे ठंडे हो गये हैं! यह आपने क्या कर दिया? उनमें थोड़ी गर्मी लाइये। वे बिलकुल ठंडे होते जा रहे हैं। उनको न क्रोध में रस है न अब कामवासना में रस है।
इधर यह भी अनेक पति-पत्नियों से मुझे सुनने को खबर मिलती है कि जैसे ही पति ध्यान करने लगता है, स्वभावत: उसकी काम में रुचि कम हो जाती है। पत्नी, जो इसके पहले कभी भी काम में रुचि नहीं रखती थी बहुत स्त्रियां साधारणतः रखती नहीं। क्योंकि वह भी एक मजा लेने का, उसमें भी वह पति को नीचा दिखलाती हैं कि 'क्या गंदगी में पड़े हो। तुम्हारी वजह से हम तक को घसिटना पड़ रहा है।' हर स्त्री यह मजा लेती है। भीतर - भीतर चाहती है, ऊपर-ऊपर ऐसा दिखलाती है कि सती- साध्वी है। तुम घसीटते हो तो हम घसिट जाते हैं, बाकी है गंदगी।' तो स्त्रियां मुर्दे की भांति घसिट जाती हैं कामवासना में और पति की निंदा कर लेती हैं, रस ले लेती हैं, उसको नीचा दिखा लेती हैं।
जैसे ही मैं देखा हूं कि पति की ध्यान में थोड़ी गति होनी शुरू होती है और कामवासना उसकी शिथिल होती है, पत्नियां एकदम हमला करने लगती हैं। वे ही पत्नियां, जो मेरे पास आ कर कह गई थीं कि किसी तरह हमें कामवासना से छुटकारा दिलाइये, पति आपके पास आते हैं, इतना सुनते हैं- मगर यह रोज-रोज की कामवासना, यह तो गंदगी है ! जो मुझसे ऐसा कह गई थीं, वही पति के पीछे पड़ जाती हैं कि रोज कामवासना की तृप्ति होनी ही चाहिए। क्योंकि अब उनको खतरा लगता है कि यह तो पति दूर जा रहा, यह तो हाथ के बाहर जा रहा है। अगर यह बिलकुल ही कामवासना से मुक्त हो गया तो निश्चित ही पत्नी से भी मुक्त हो गया। तो पत्नी को लगता है, अब तो मेरा कोई मूल्य न रहा। तो अड़चन आती है।
मैं
हूं। उसकी प्रगति निश्चित हो रही है। लेकिन यही कठिनाई है। और तुम्हारी प्रगति को तुम्हारे पति या तुम्हारे परिवार के लोग स्वीकार न करेंगे। क्योंकि तुम्हारी प्रगति को स्वीकार करने का अर्थ उनके अहंकार की पराजय है। वे इनकार करेंगे।
मीरा को मीरा के परिवार के लोगों ने स्वीकार किया ? जहर का प्याला भिजवाया कि यह मर ही जाये? क्योंकि यह तो बदनामी का कारण हो रही है। राजपरिवार की स्त्री और राजस्थान में, जहां कोई पर्दे के बाहर नहीं आता, इसने सब लोक-लाज छोड़ दी ! यह रास्तों पर नाचती फिरती है। भिखारियों से मिलती है, साधु-संतों के पास बैठती है। घर के लोग दुखी थे, परेशान थे। प्रगति नहीं दिखाई पड़ती