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शास्त्र से विवाद पैदा हुआ है सत्य तो पैदा नहीं हुआ। और शास्त्र से संघर्ष पैदा हुआ है संप्रदाय पैदा हुए हैं लोग बंटे और कटे और हिंसा और हत्या हुई है।
परमात्मा की भाषा मौन है। इसका यह अर्थ नहीं है कि शब्द कोई शैतान की भाषा है। इसका इतना ही अर्थ है कि सत्य तो तभी अनुभव होता है जब कोई मनुष्य परिपूर्ण मौन को उपलब्ध होता है। लेकिन जब मनुष्य कहना चाहता है तो उसे माध्यम का सहारा लेना पड़ता है। तब जो उसने जाना है वह उसे शब्द में रखता है; बस रखने में ही अधिक तो समाप्त हो जाता है।
ऐसा ही समझो कि तुम गये समुद्र के तट पर और तुमने उगजे सूरज को देखा फैली देखी लाली तुमने सारे सागर पर, पक्षियों के गीत, सुबह की ताजी हवा, मदमस्त तुम हो गये! तुमने चाहा कि घर आओ, अपनी पत्नी-बच्चों को भी यह खबर दो। तो तुमने एक कागज पर चित्र बनाया सूरज के उगने का, पानी की लहरों का, वृक्ष हवा में झुके-झुके जा रहे हैं! वह चित्र ले कर तुम घर आये। क्या तुम्हारा चित्र वही खबर लायेगा जो तुम्हें अनुभव हुआ था तुम्हारा चित्र तो मर गया; यद्यपि तुम्हारा चित्र तुम्हारे अनुभव से पैदा हुआ तुमने सागर देखा, सुबह का उगता सूरज देखा। लेकिन जैसे ही तुमने इस अनुभव को कागज पर उतारा, यह तो मुर्दा हो गया। या कि तुम एक संदूक में बंद करके ला सकते हो? सागर की हवा, सूरज की किरणें, एक संदूक में बंद कर लेना, घर ले आना ताला लगा कर-जब घर आ कर खोलोगे तो संदूक खाली मिलेगी। न तो ताजी हवा होगी और न धूप की किरणें होंगी।
अंधेरे को तो पालतू बना भी लो, धूप को तो बंद नहीं किया जाता। धूप तो बंद होते ही मर जाती है। सौंदर्य को कैसे बांध कर लाओगे? कविता लिखोगे? गीत बनाओगे?
अब हमारे पास और भी बेहतर साधन हैं, सुंदर से सुंदर और बहुमूल्य से बहुमूल्य कैमरले जा सकते हो। रंगीन चित्र ले आ सकते हो। फिर भी चित्र मरा हुआ होगा। चित्र में कोई प्राण तो न होंगे। वह जो सूरज वहां उगा था, बढ़ रहा था, उठा जा रहा था आकाश की तरफ। तुम्हारे चित्र का सूरज तो रुका हुआ होगा वह तो फिर बढेगा नहीं। वह जो सूरज तुमने सागर पर देखा था, वह थोड़ी देर बाद, दोपहर का सूरज हो जायेगा, थोड़ी देर बाद सांझ का हो जायेगा, डूबेगा, अस्त हो कर अंधेरे में खो जायेगा, विराट अंधकार छा जायेगा। तुम्हारा चित्र तो अटका रह गया। वह तो फिर दोपहर नहीं होगी, सांझ नहीं होगी, अंधेरा नहीं घिरेगा। तुम्हारा चित्र तो मरा हुआ है। वह तो एक क्षण की खबर है। जो तुमने देखा था, वह जीवंत था। उस जीवंत को तुमने सिकोड़ लिया एक मुर्दा फोटोग्राफ में और बंद कर लिया। वह एक क्षण की खबर है! वह वास्तविक नहीं।
तुम्हें कई बार यह अनुभव हुआ होगा अनेक लोगों को अनुभव होता है। फोटोग्राफर आ कर तुम्हारा फोटो उतारता है और तुम कहते हो नहीं, जंचता नहीं। अब फोटोग्राफ झूठा तो हो ही नहीं सकता, एक बात। क्योंकि कैमरे को कुछ तुमसे दुश्मनी नहीं है। कैमरा तो वही कहेगा जो था। फिर भी तुम कहते हो, मन भरता नहीं; नहीं, यह मेरे चेहरे जैसा चेहरा लगता नहीं, बात क्या है? बात इतनी ही है कि तुमने अपने चेहरे को जब भी दर्पण में देखा है तो वह जीवित था। तुम्हारी जो भी