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नहीं आता।
अगर निःशब्द समझ में आ जाये तो सब शब्द समझ में आ जाते हैं। अगर निःशब्द का अनुभव
हो जाये तो सभी शास्त्रों की व्याख्या हो जाती है; सभी शास्त्र सत्य सिद्ध हो जाते हैं। लेकिन शास्त्र को पकड़ने से मूल की पकड़ नहीं आती।
शब्द तुमने रचे
जैसे मेंहदी रची
जैसे बैंदी रखी
शब्द तुमने रचे
प्रेम अक्षर थे ये दो अनर्थ के
अर्थ तुमने दिया
मैं, यह जो ध्वनि थी
अंध बर्बर गुफाओं की
अपने को भर कर
उसे नूतन अस्तित्व दिया
बाहों के घेरे
ज्यों मंडप के फेरे
ममता के स्वर
जैसे वेदी के मंत्र
गुंजरत मुंह अंधेरे
शब्द तुमने र
जैसे प्रलयंकर लहरों पर
अक्षयवट का एक पत्ता बचे शब्द तुमने रचे ।
शब्द भी आते तो उसी मूल स्रोत से हैं जहां से मौन आता है।
शब्द तुमने र
प्रभु के हैं। शास्त्र भी उसके हैं। लेकिन ध्यान रहे, शास्त्र से उसकी तरफ जाने का मार्ग नहीं है। उसकी तरफ से आओ तो शास्त्र को समझने की सुविधा है।
इसलिए मैं एक बात तुमसे कहना चाहूंगा: शास्त्र को पढ़ कर किसी ने कभी सत्य नहीं जाना; लेकिन जिसने सत्य जाना उसने सब शास्त्र जान लिए। शास्त्र को पढ़ने का मजा सत्य को जानने के बाद है, यह तुम्हें अनूठा लगेगा। क्योंकि तुम कहोगे फिर पढ़ने का सार क्या! लेकिन मैं तुमसे फिर कहता हूं शास्त्र को पढ़ने का मजा सत्य को जानने के बाद है। एक बार तुमने सत्य को जान लिया थोड़ा स्वाद मिल गया; फिर तुम्हें जगह-जगह उसकी ही झलक मिलेगी। फिर छाया पकड़ में