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होने में अड़चन हो जायेगी। यह बाधा बन जायेगा।
जैसे हम कुआ खोदते हैं तो पानी तो है ही, पानी थोड़े ही हमें लाना पड़ता है कहीं से। पानी तो जमीन के नीचे बह ही रहा है। उसके झरने भरे हैं। हम इतना ही करते हैं कि बीच की मिट्टी की पर्तों को अलग कर देते हैं, पानी प्रगट हो जाता है।
अष्टावक्र कहते हैं, ज्ञान तो स्वभाव है। उसके तो झरने तुम्हारे भीतर हैं ही। तुम बस जो बीच में मिट्टी की पर्ते जम गई हैं, उन्हें अलग कर दो। और मिट्टी की बड़ी से बड़ी पर्ते जम गई हैं ज्ञान के कारण। किसी की पर्त वैद से बनी, किसी की कुरान से, किसी कि बाइबिल से, किसी ने कहीं से सुन कर इकट्ठा किया, किसी ने कहीं से सुन कर इकट्ठा किया। बिना जाने तुमने सुन सुन कर जो इकट्ठा कर लिया है, उसे भूलो।
तथापि न तव स्वास्थ्य सर्वविस्मरणाहते। 'जब तक तू सब न भूल जाये तब तक तुझे स्वास्थ्य उपलब्ध न होगा।'
लेकिन हमारा तो शब्द पर बड़ा भरोसा है और हमें शब्द के माधुर्य में बड़ी प्रीति है। शब्द मधुर होते भी हैं। शब्द का भी संगीत है और शब्द का भी अपना रस है। इसलिए तो काव्य निर्मित होता है। इसलिए शब्द की जरा-सी ठीक व्यवस्था से संगीत निर्माण हो जाता है। फिर शब्द में हमें रस है क्योंकि शब्द में बडे तर्क छिपे है। और तर्क हमारे मन को बड़ी तृप्ति देता है। अंधेरे में हम भटकते
तर्क से हमें सहारा मिल जाता लगता है कि चलो कुछ नहीं जानते लेकिन कुछ तो हिसाब बंधने लगा, कुछ तो बात पकड में आने लगी, एक धागा तो हाथ में आया, तो धीरे-धीरे इसी धागे के सहारे और भी पा लेंगे। और हमारा छपे हुए शब्द पर तो बड़ा ही आग्रह है।
__ एक मित्र मुझे मिलने आये। वे कहने लगे. 'आपने जो बात कही, वह किस शास्त्र में लिखी है?' मैंने कहा 'किसी शास्त्र में लिखी हो तो सही हो जायेगी? सिर्फ लिखे होने से सही हो जायेगी? अगर सही है तो लिखी न हो शास्त्र में तो भी सही है और गलत है तो सभी शास्त्रों में लिखी हो तो गलत है। बात को सीधी क्यों नहीं तौलते?' वे कहने लगे : 'वह तो ठीक है, लेकिन फिर भी आप यह बतलाये कि किस शास्त्र में लिखी है? तो मैंने उसे कहा कि मुल्ला नसरुद्दीन की दुर्घटना हो गई, कार टकरा गई एक ट्रक से, बड़ी चोट लगी। अस्पताल में भर्ती हुआ। डाक्टर ने मरहम-पट्टी की और कहा कि 'घबरा मत नसरुद्दीन, कल सुबह तक बिलकुल ठीक हो जाओगे। बड़े मियां, सुबह तशरीफ ले जाना।' लेकिन दूसरे दिन सुबह डाक्टर भागा हुआ अंदर आया और बोला कि बड़े मियां, रुको-रुको, कहां जा रहे हो? अभी-अभी अखबार में मैंने पढ़ा है कि आपका जबर्दस्त ऐक्सीडेन्ट हुआ है, मुझे दुबारा देखना पड़ेगा।
अखबार में जब पढ़ा तब बात और हो गई!
रामकृष्ण कहते थे कि उनका एक शिष्य था, वह सुबह अखबार पढ़ रहा था। उसकी पत्नी बोली. 'क्या अखबार पढ़ रहे हो! अरे रात पडोस में आग लग गई!' उसने कहा. 'अखबार में तो खबर ही नहीं है, बात झूठ होगी। पड़ोस में आग लगी, मगर वह आदमी अखबार में देख रहा है!