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थी, दीवानापन दिखाई पड़ता था। यह पागल हो गई है!
जीसस अपने गांव गये एक ही बार। फिर गांव से लौट कर उन्होंने अपने शिष्यों को कहा, वहां जाने का कोई अर्थ नहीं। क्योंकि गांव के लोग यह मानने को राजी नहीं होते थे कि बढ़ई का छोकरा और एकदम ईश्वर का पुत्र हो गया।
'छोड़ो भी, किसी और को चराना! किसी और को बताना ये बातें!' गांव के लोग यह मानने को राजी न थे। गांव के लोगों की भी बात समझ में आती है। जिसको उन्होंने लकड़ी को चीरते -फाइते देखा, बाप की दूकान पर काम करते देखा, संदूके बनाते देखा-अचानक एकदम ईश्वर-पुत्र. जोसेफ का बेटा ईश्वर का बेटा हो गया एकदम! किसको समझा रहे हो! किसी और को समझा लेना। गांव के लोग सुनने को राजी नहीं थे।
बुद्ध जब अपने गांव लौटे तो बाप भी राजी नहीं थे बुद्ध को स्वीकार करने को कि तुम्हें ज्ञान हो गया है। बाप ने यह कहा कि छोड़, मैं तुझे बचपन से जानता हूं। मैंने तुझे पैदा किया। तेरा खून मेरा खून है। तेरी हड्डी में मैं हूं। मैं तुझे भलीभति पहचानता हूं। यह बकवास छोड़ और यह फिजूल के काम छोड़। हो गया बहुत, अब घर लौट आ। और मैं बाप हूं तेरा, मेरे हृदय का दवार तेरे लिए अभी भी खुला है। क्षमा कर दूंगा; यद्यपि तूने काम जो किया है वह अक्षम्य अपराध है। बुढ़ापे में बाप को छोड़ कर भाग गया, पत्नी को छोड़ कर भाग गया, बेटे को छोड़ कर भाग गया! तू ही हमारी आंख का तारा था!
बुद्ध सामने खड़े हैं और यह बाप यह कह रहा है! थोड़ा सोचो, मामला क्या है! क्या बाप को बिलकुल दिखाई नहीं पड़ रहा है? बाप को दिखाई पड़ने में अड़चन है। जो दूसरों को दिखाई पड़ गया, इसे दिखाई नहीं पड़ रहा है। अहंकार को बड़ी बाधा है। बाप कैसे मान ले कि बेटा आगे चला गया! मान ले तो बड़ी क्रांति होगी।।
बहुत कम लोग इतने विनम्र होते हैं कि अपने निकट जनों को आगे जाते देख कर स्वीकार कर लें। तो प्रगति तो निश्चित हो रही है। उसी प्रगति के कारण वे अड़चन में हैं। अगर प्रगति न हो रही हो तो वे मुझे गालियां देना बंद कर दें, गालियां देने का क्या प्रयोजन है! मैंने उनका कुछ बिगाड़ा नहीं। पर वे देखते हैं कि पत्नी कुछ ऊपर उठती जाती है; कुछ श्रेष्ठतर होती जाती है। यह बर्दाश्त के बाहर है। मुझे जो गालियां दे रहे हैं, वे बड़ी सूचक हैं। वे मुझसे बदला ले रहे हैं। उनके अहंकार पर जो चोट पड़ रही है, वे मुझसे बदला ले रहे हैं। हालांकि मुझसे उनका कुछ लेना देना नहीं
है।
जब तक वे गालियां देते हैं, शांति से उनकी गालियां सुनना और ध्यान किए जाना। गालियां उनकी उसी दिन बंद होंगी, जिस दिन उनके भीतर यह सदभाव जगेगा, आंख खुलेंगी और वे देखेंगे कि कुछ अंतर हुआ है। उसी दिन गालियां बंद होंगी। लेकिन यह तुम्हारे हाथ में नहीं है। और भूल कर भी यह चेष्टा मत करना कि उनको समझाना है। क्योंकि जितनी ही समझाने की चेष्टा होगी, उतना ही उनका समझना मुश्किल हो जायेगा। यह बात ही छोड़ दो। यह उनका है। न उनकी गालियों