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सब आत्मा है। फिर कोई बिछुड्न नहीं हो सकती । फिर विरह नहीं हो सकता। फिर मिलन शाश्वत हुआ, फिर सदा के लिए हुआ। और जो सदा के मिलन को उपलब्ध हो गये धन्यभागी हैं। सुखी भव! अष्टावक्र कहते हैं, फिर सुख ही सुख है। फिर तू सुख है। सुखी भव
'तेरे ही अज्ञान से विश्व है। परमार्थतः तू एक है। तेरे अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं है-न संसारी और न असंसारी । '
'तेरे ही अज्ञान से विश्व है। '
अज्ञान यानी भेद । ज्ञान यानी अभेद । अज्ञानी यानी अपने को अलग मानना । अपने को अलग मानने में ही सारा उपद्रव खड़ा हो जाता है। ज्ञान यानी अपने को एक जान लेना, पहचान लेना कि मैं एक हूं ।
तवैवाज्ञानतो विश्व त्वमेकः परमार्थतः
और वस्तुतः हम एक हैं, इसलिए एक होने में सुख मिलता है। क्योंकि जो स्वाभाविक है, वह सुख देता है। हम अनेक नहीं हैं, इसलिए अनेक होने में दुख मिलता है। क्योंकि जो स्वभाव के विपरीत है, वह दुख देता है। दुख बोधक है केवल, सूचक है कि कहीं तुम स्वभाव के विपरीत जा रहे हो । सुख संकेतक है कि तुम चलने लगे स्वभाव के अनुकूल। जहां स्वभाव से संगीत बैठ जाता है वहीं सुख है। जिस व्यक्ति से तुम्हारा स्वभाव मेल खा जाता है, उसी के साथ सुख मिलने लगता है। जिस घड़ी में किसी भी कारण से किसी भी परिस्थिति में तुम जगत के साथ बहने लगते हो, जगत की धारा में एक हो जाते हो, वहीं सुख मिल जाता है।
सुख तुम्हारे हाथ की बात नहीं है। सुख कभी-कभी अनायास भी मिलता है। राह पर तुम चले जा रहे थे, सुबह घूमने निकले थे और अचानक एक घड़ी आ जाती है, एक झरोखा खुल जाता है, एक गवाक्ष, एक क्षण को तुम पाते हो महासुख। फिर खो जाता है, तुम्हारी समझ में नहीं आता हुआ क्या! शायद आकस्मिक रूप से, अकारण, तुम्हारी बिना किसी चेष्टा के तुम ऐसी जगह थे, चित्त की ऐसी दशा में थे जहां जगत से मेल हो गया, तुम जगत की धारा के साथ बहने लगे। चलते थे; विचार न था, सूरज निकला था, पक्षी गीत गाते थे, सुबह की हवा सुगंध ले आई थी, नासापुट सुगंध से भरे थे, प्राण उत्कुल्ल थे, सुबह की ताजगी थी, तुम नाचे - नाचे थें- स्व क्षण को मेल खा गया, अस्तित्व से मेल खा गया, अस्तित्व के साथ तुम लयबद्ध हो गये! तुम्हारे किए न था, अन्यथा तुम सदा लयबद्ध रहो। आकस्मिक हुआ था, इसलिए खो गया। फिर तुम उतर गये। फिर पटरी से गाड़ी नीचे हो गई।
उसी व्यक्ति को हम ज्ञानी कहते हैं, जिसने इसे बोधपूर्वक पहचान लिया और अब जिसकी पटरी नीचे नहीं उतरती । अब तुम लाख धक्का दो, ऐसा-वैसा करो !
तुमने एक जापानी खिलौना देखा ? दारुमा गुड्डी कहलाती है । 'दारुमा' शब्द आता है बोधिधर्म से। एक भारतीय बौद्ध भिक्षु कोई चौदह सौ वर्ष पहले चीन गया। वह बड़ा अनूठा व्यक्ति था, जिसकी मैं बात कर रहा हूं ऐसा व्यक्ति था। जीवन से उसका मेल शाश्वत हो गया था, छंदबद्ध था। तुम उसे