Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 386
________________ तुमने भी कभी-कभी किन्हीं अनायास क्षणों में पाया होगा : जब तुम नहीं होते तब थोड़ी-सी झलक मिलती है। प्रेमी घर आ गया है तुम्हारा, तुम हाथ में हाथ ले कर बैठ गये हो। एक क्षण को प्रेमी की उपस्थिति तुम्हें इतना लीन कर देती है कि तुम मिट जाते, कुछ खयाल नहीं रह जाता अपना। एक बूंद सरक जाती है। रस झरता है। कभी सूरज को उगते देखा है त्र: बैठ गये नदी तट पर, उठने लगा सूरज। यह सुबह की हवा, यह नदी की शीतलता, यह शांति, यह खुला आकाश, यह सूरज का उठना, यह सूरज की किरणों का फैलता हुआ सौंदर्य का जाल- क्षण भर को तुम ठगे रह गये! भूल गये कि तुम हो। क्योंकि स्वयं को बनाये रखने के लिए स्वयं को सदा स्मरण रखना जरूरी है, यह खयाल रखना। अहंकार कोई ऐसी चीज नहीं है कि पत्थर की तरह तुम्हारे भीतर रखी है। अहंकार तो ऐसा ही है जैसा मैं बार-बार कहता : जैसे कोई साइकिल चलाता, पैडल मारो तो साइकिल चलती है; पैडल मारना भूल गये थोड़ी देर को कि साइकिल गिरी। अहंकार कुछ ऐसा थोड़े ही है कि पत्थर की तरह रखा है, तुम जब तक याद रखो तभी तक है। याददाश्त रखने में ही पैडल चलता है। जैसे ही तुमने याददाश्त भूली कि गया। तो कभी संगीत सुन कर सिर डोलने लगा, तो गया अहंकार। उस क्षण में तुम्हें रस झरता है, आनंद मालूम होता है। सौंदर्य हो, प्रेम हो, ध्यान हो, संगीत हो या कोई और कारण हों-कभी-कभी तो ऐसी चीजों से भी रस झर जाता है कि दूसरों को देख कर आश्चर्य होता है। तम क्रिकेट का मैच देखाएंने गये, तुम्हें क्रिकेट के मैच में रस है, दूसरे समझेंगे पागल हो गये हो, लेकिन तुम बैठे हो वहां मंत्रमुग्ध, आंखें ठगी रह गई हैं, पलकें नहीं झपकती हैं, भूल ही गये अपने को, मूर्तिवत। जैसे कभी बुद्ध बैठ गये होंगे बोधिवृक्ष के नीचे, ऐसे तुम कभी-कभी क्रिकेट देखते समय, फुटबाल-हाकी देखते समय बैठ जाते हो। वहां से तुम बड़े आनंदित लौटते हो; कहते हो कि बड़ा रस आया! क्या, हो क्या जाता है? तुम थोड़ी देर को अपने को भूल जाते हो। जहां भूले कि मिटे। आत्मविस्मरण अनिवार्यरूपेण अहंकार का विसर्जन हो जाता है। ___ इधर मुझे सुनते-सुनते कई बार तुम्हें जब भी सुख मिलता हो तो खयाल रखना वह घड़ी वही होगी जब तुम सुनते-सुनते खो जाते हो, भूल जाते हो, याद नहीं रह जाती। अहंकार श्वास जैसा नहीं है; साइकिल के पैडल मारने जैसा है। याद न रहे तो भी श्वास चलती है। श्वास प्राकृतिक है। तुम रात सो गये तो भी श्वास चलती है। लेकिन रात नींद में अहंकार रह जाता है? सम्राट को पता रहता है मैं सम्राट हूं? भिखारी को पता रहता है मैं भिखारी हूं? सुंदर को पता रहता है मैं सुंदर हूं? धनी को पता रहता है बैंक-बैलेंस का? जब तुम रात सो जाते हो, तुम्हें याद रहता है तुम्हारी पत्नी भी कमरे में सोई है? कुछ याद नहीं रह जाता। यह मकान तुम्हारा है, यह भी याद नहीं रह जाता। अगर रात नींद में तुम्हें उठा कर स्ट्रेचर पर रखकर अस्पताल में रख दिया जाता है तो तुम्हें पता नहीं रहता है। सुबह तुम आंख खोलते हो तब पता चलता है। लेकिन सांस चलती रहती है। राजमहल में, गरीब के झोपड़े में, नंगे आदमी की, सोने से लदे आदमी की श्वास चलती

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