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मत देना, शून्य पर ध्यान देना । पंक्ति-पंक्ति के बीच में पढ़ना, बीच-बीच में पढ़ना और शब्द - शब्द के बीच जो अंतराल हो वहां ध्यान रखना । जब कभी बोलते-बोलते मैं चुप रह जाता हूं? तब ज्यादा उड़ेल रहा हूं। तब तुम अपने पात्र को खूब भर लेना ।
कहीं मिलन हो जाये।
तुम बरसो, भीगे मेरा तन तुम बरसो, भीगे मेरा मन तुम बरसो सावन के सावन कुछ हलकी छलकी गागर हो कुछ भीगी भारी हो काँवर
जब तुम बरसो तब मैं तरसूं जब मैं तरसूं तब तुम बरसो । हे धाराधर!
कहीं मिलन हो जाये।
जब मैं बरसूं तब तुम तरसो ।
जब तुम तरसो तब मैं बरसूं ।
कहीं मिलन हो जाये! तुम्हारी प्यास और जो जल ले कर मैं तुम्हारे द्वार पर खड़ा हूं उसका कहीं मिलन हो जाये।
तुम बरसो, भीगे मेरा तन
तुम बरसो, भीगे मेरा मन
तुम बरसो सावन के सावन कुछ हलकी छलकी गागर हो कुछ भीगी भारी हो कावर
जब तुम बरसो तब मैं तरसूं जब मैं तरसूं तब तुम बरसो । हे धाराधर!
शब्द से कुछ न कहूंगा मैं नयनों के बीच रहूंगा मैं जो सहना मौन सहूंगा मैं