Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 379
________________ चाहिए। भीतर शब्दों की, विचारों की श्रृंखला न चलती हो। भीतर तर्क का जाल न हो। भीतर पक्षपात न हो। 'सुनो' का क्या अर्थ होता है? 'सुनो' का अर्थ होता है. अपनी मत बीच-बीच में डालो, जरा अपने को हटाकर रख दो। सीधा-सीधा सुन लो! सुनने का यह अर्थ नहीं होता है कि मेरी मान लो | सुनने का इतना ही अर्थ होता है. मानने न मानने की फिक्र पीछे कर लेना; अभी सुन तो लो; जो कहा जा रहा है, उसे ठीक-ठीक सुन तो लो । तुम वही सुनते हो जो तुम सुनना चाहते हो। तुम वही सुनते हो जो तुम्हारे मतलब का है। वहीं तक सुनते हो जहां तक तुम्हारे मतलब का है। तुम बड़ी काट-पीट करके सुनते हो। तुम उतना ही भीतर जाने देते हो जितना तुम्हें बदलने में समर्थ न होगा। तुम उतना ही भीतर जाने देते हो जितना तुम्हारे पुरानेपन को और मजबूत करेगा; तुम्हें और प्रगाढ़ कर जाएगा; तुम्हारे अहंकार को और कठोर, मजबूत, शक्तिशाली बना जाएगा। तुम थोड़े और ज्ञानी हो कर चले जाओगे। मैं तुमसे यह नहीं कहता । नहीं कहता इसीलिए कि कृष्णमूर्ति चालीस साल कहकर भी किसको सुना पाये! मुझे तो जो कहना है, तुमसे कहे चला जाता हूं। गंभीर है या गैर-गंभीर है, इसको दोहराने से कुछ भी न होगा। सुनने को तुम आये हो तो सुन लोगे। सुनने को तुम नहीं आये हो तो नहीं सुनोगे । तुम पर छोड़ दिया। मेरा काम मैं पूरा कर देता हूं बोलने का। मैं परिपूर्णता से बोल देता हूं। मैं अपन समग्रता से बोल देता हूं। अगर तुम भी सुनने की तैयारी में हो कहीं मेरा तुम्हारा मेल हो जाए, तो घटना घट जाएगी। बोलनेवाला अगर परिपूर्णता से बोलता हो और सुननेवाला भी परिपूर्णता से सुन ले तो श्रवण में ही सत्य का हस्तांतरण हो जाता है। जो नहीं दिया जा सकता, वह पहुंच जाता है। जो नहीं कहा जा सकता, वह भी कह दिया जाता है। अव्याख्य की व्याख्या हो जाती है। अनिर्वचनीय एक हाथ से दूसरे हाथ में उतर जाता है। लेकिन बोलनेवाले और सुननेवाले का तालमेल हो जाए, एक ऐसी घड़ी आ जाए, जहां बोलनेवाला भी अपनी परिपूर्णता में, पूरे भाव में और तुम भी अपनी परिपूर्णता हो, पूरे भाव में। अगर ऐसा मिलन हो जाए न तो बोलनेवाला बोलनेवाला रह जाता है, न सुननेवाला सुननेवाला रह जाता है। गुरु और शिष्य एक-दूसरे में खो जाते हैं, लीन हो जाते हैं! इसको दोहराना क्या है कि गंभीरता से सुनो! जो भी मैं कह रहा हूं, या तो सभी गंभीर है, या कुछ भी गंभीर नहीं। दोनों में से मैं किसी भी बात से राजी हूं : या तो तुम मान लो कि सब गंभीर है तो भी मैं राजी हूं क्योंकि तब गंभीर कहने का कोई अर्थ न रहा, सभी गंभीर है; या तुम कहो कुछ भी गंभीर नहीं, तो भी मैं राजी हूं । अगर तुम मुझसे पूछो कि क्या है गंभीर है या नहीं? तो मैं तो तुमसे कहूंगा सब लीला है। कई बार तो ऐसा होता है कि तुम्हारी गंभीरता के कारण ही तुम नहीं सुन पाते। गंभीर हो कर तुम बोझिल हो जाते हो, हलके नहीं रह जाते; तनाव से भर जाते हो। मैं तुम्हें तनाव से नहीं भरना चाहता । अगर मैं तुमसे कहूं गंभीर बात कह रहा हूं सुनो तो तुम रीढ़ सीधी करके बैठ जाओगे। क्या करोगे और? तुमने देखा है, स्कूल में शिक्षक कहता है : 'बच्चो, एकाग्र हो जाओ! महत्वपूर्ण बात कही

Loading...

Page Navigation
1 ... 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422