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प्रश्नकर्ता ने नाम नहीं लिखा है, वह कायरता का सबूत है। मैं साधारणतः उन प्रश्नों के
उत्तर नहीं देता जिन पर आपने अपना नाम न लिखा हो। क्योंकि जिसकी इतनी हिम्मत नहीं है कि सूचना दे सके कि यह मेरा प्रश्न है, किसका प्रश्न है, उसका प्रश्न इस योग्य नहीं कि उसका उत्तर दिया जाए।
लेकिन प्रश्न महत्वपूर्ण है और बहुतों के मन में उठता होगा, इसलिए उत्तर देता हूं। 'पूर्व में आप अपने प्रवचन के अंत में कहते थे, मैं आपके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता
हू
मैंने पूर्व में क्या कहा है, उसका मैं हिसाब नहीं रखता, तुम भी मत रखना। मैं तो उतनी ही बात का जुम्मा लेता हूं जो मैं अभी कह रहा हूं। घड़ी भर पहले जो कहा था, उसका भी मेरा कोई जुम्मा नहीं। इस बात को ठीक से याद रख लेना, अन्यथा तुम बड़े जाल में पड़ जाओगे। मैं तो इस क्षण हूं और जो मेरा वक्तव्य इस क्षण है, वही मेरा है; बाकी जो बीता सो बीता, जो गया सो गया । उसका हिसाब नहीं रखता हूं। अन्यथा तुम मेरे वक्तव्यों में बड़े विरोधाभास पाओगे; एक वक्तव्य दूसरे का खंडन करता हुआ मालूम पड़ेगा। अगर तुमने हिसाब लगाने की कोशिश की तो विमुक्त होना तो दूर, तुम विक्षिप्त हो जाओगे ।
इसलिए इस सूत्र को खूब सम्हाल कर रख लो कि जो मैं तुमसे कह रहा हूं इस क्षण वहीः । घड़ी भर बाद इसे भी भूल जाना। गुलाब का पौधा है, फूल लगा आज तुम उससे जा कर नहीं कहते कि कल तो बड़ा फूल लगा था या छोटा फूल लगा था, आज ऐसा क्यों? गुलाब का पौधा अगर बोल सकता तो कहता,'आज ऐसा है, कल वैसा था।' तुम आकाश से नहीं कहते कि कल तो सूरज निकला था, आज बादल घिरे हैं, बात क्या है? ऐसा विरोधाभास क्यों?' आकाश अगर कह सकता तो कहता : 'कल वैसा था, आज ऐसा है।'
विन्सेंट वानगाग, एक बड़ा डच चित्रकार हुआ। चित्र बना रहा था, किसी ने पूछा कि तुम्हारा सबसे श्रेष्ठतम चित्र कौन-सा है? उसने कहा, 'यही जो मैं अभी बना रहा हूं।' दूसरे दिन वह दूसरा चित्र बना रहा था। वही आदमी फिर आया। उसने कहा कि कल जो चित्र तुमने बताया था और कहा था श्रेष्ठतम है, उसे मैं खरीदने आया हूं। उसने कहा, अब वह श्रेष्ठतम नहीं रहा। अब तो मैं जो बना रहा हूं। वही श्रेष्ठतम है जिसमें मैं मौजूद हूं। बाकी तो पिटी लकीर हैं। सांप निकल गया, रेत पर निशान छूट गया है।
पूर्व में मैंने क्या कहा है, मैं ही हिसाब नहीं रखता, तुम क्यों रखोगे? छोड़ो ! कहीं ऐसा न हो कि आज जो मैं कह रहा हूं उसे आज न सुन पाओ और परसों फिर मुझसे पूछने आओ जिस मित्र ने यह पूछा है, जब मैं ऐसा कह रहा था तब उसने सुना नहीं होगा। अगर सुन लेता तो जीवन में क्रांति हो गई होती। अगर समझ लेता तो यह प्रश्न न उठता। उस दिन चूके अब भी मत चूक जाना।