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नास्तिक और आस्तिक के बीच पदार्थ और परमात्मा के बीच चार्वाक और अष्टावक्र के बीच मैं तुमसे उसी असली समन्वय की बात कर रहा हूं। जिस दिन नास्तिकता मंदिर की सीढ़ी बन जाती है, उस दिन समन्वय हुआ। उस दिन तुमने जीवन को इकट्ठा करके देखा उस दिन द्वैत मिटा मैं तुमसे परम अद्वैत की बात कर रहा हूं । शंकर ने भी तुमसे इतने परम अद्वैत की नहीं की, वे भी चार्वाक के विरोधी हैं। इसका मतलब क्या होता है? इसका मतलब होता है : आखिर चार्वाक भी है तो परमात्मा का हिस्सा ही। तुम कहते हो सभी में परमात्मा है; फिर चार्वाक में नहीं है? फिर चार्वाक से जो बोला, वह परमात्मा नहीं बोला? फिर चार्वाक का खंडन कर रहे हो क्या कह रहे हो? क्या कर रहे हो? अगर वास्तविक अद्वैत है तो तुम कहोगे. चार्वाक की वाणी में भी प्रभु बोला। यही मैं तुमसे कहता हूं। और वाणी उसकी मधुर है इसलिए चार्वाक नाम पड़ा। चार्वाक का अर्थ होता है : मधुर वाणी वाला । उसका दूसरा नाम है. लोकायत। लोकायत का अर्थ होता है. जो लोक को प्रिय है; जो अनेक को प्रिय है। लाख तुम कहो ऊपर से कुछ, कोई जैन है, कोई बौद्ध है, कोई हिंदू है, कोई मुसलमान-यह सब ऊपरी बकवास है; भीतर गौर से देखो, चार्वाक को पाओगे। और तुम अगर इन धार्मिको के स्वर्ग की तलाश करो तो तुम पाओगे कि सब स्वर्ग की जो योजनाएं हैं चार्वाक ने ही बनाई होंगी। स्वर्ग में जो आनंद और रस की धारे बह रही हैं, वे चार्वाक की ही धारणाएं हैं।
सुखं जीवेत! चार्वाक कहता है : सुख से जीयो। इतना मैं जरूर कहूंगा कि चार्वाक सीढ़ी है। और जिस ढंग से चार्वाक कहता है, उस ढंग से सुख से कोई जी नहीं सकता। क्योंकि चार्वाक ने ध्यान का कोई सूत्र नहीं दिया। चार्वाक सिर्फ भोग है, योग का कोई सूत्र नहीं है; अधूरा है। उतना ही अधूरा है जितने अधूरे योगी हैं। उनमें योग तो है लेकिन भोग का सूत्र नहीं है। इस जगत में कोई भी पूरे को स्वीकार करने की हिम्मत करता नहीं मालूम पड़ता - आधे- आधे को। मैं दोनों को स्वीकार करता हूं। और मैं कहता हूं : चार्वाक का उपयोग करो और चार्वाक के उपयोग से ही तुम एक दिन अष्टावक्र के उपयोग में समर्थ हो पाओगे ।
जीवन के सुख को भोगो। उस सुख में तुम पाओगे दुख ही दुख है। जैसे-जैसे भोगोगे वैसे-वैसे सुख का स्वाद बदलने लगेगा और दुख की प्रतीति होने लगेगी। और जब एक दिन सारे जीवन के सभी सुख दुख रूप हो जाएंगे, उस दिन तुम जागने के लिए तत्पर हो जाओगे। उस दिन कोन तुम्हें रोक सकेगा? उस दिन तुम जाग ही जाओगे। कोई रोक नहीं रहा है। रुके इसलिए हो कि लगता है शायद थोड़ा सुख और हो, थोड़ा और सो लें। कोन जाने...। एक पन्ना और उलट लें संसार का । इस कोने से और झांक लें! इस स्त्री से और मिल लें! उस शराब को और पी लें! कोन जाने कहीं सुख छिपा हो, सब तरफ तलाश लें!
मैं कहता भी नहीं कि तुम बीच से भागो। बीच से भागे, पहुंच न पाओगे, क्योंकि मन खींचता रहेगा। मन बार-बार कहता रहेगा। ध्यान करने बैठ जाओगे, लेकिन मन में प्रतिमा उठती रहेगी उसकी, जिसे तुम - पीछे छोड़ आए हो । मन कहता रहेगा. 'क्या कर रहे हो मूर्ख बने यहां बैठे? पता नहीं सुख वहा होता। तुम देख तो लेते, एक दफा खोज तो लेते!