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अनेक- अनेक रूपों में प्रगट हो रहा है। वही तुम्हारे भीतर सदा से मौजूद है तुम झपकी ले रहे हो, सो रहे हो-एक बात। आंख खोलते ही तुम उसे पा लोगे। उसके पाने में और तुम्हारी स्थिति में इंच भर का फासला नहीं है, जिसे यात्रा करनी हो। ऐसा ही समझो कि सूरज निकला है तुम आंख बंद किए बैठे हो। रोशनी चारों तरफ झर रही है, लेकिन तुम अंधेरे में हो। तुमने पलक खोली रोशनी से भर गये। कहीं जाना न था। रोशनी पलक पर ही विराजी थी; तुम्हारी पलक पर ही दस्तक दे रही थी। पलक खुली कि सब खुल गया। प्रकाश ही प्रकाश हो गया। सहज है सत्य की उपलब्धि। और समाधि श्रम-साध्य नहीं है, समाधि समर्पण-साध्य है, श्रद्धा से है।
महावीर और बुद्ध में तुम्हें बहुत तर्क मिलेगा बारीक तर्क मिलेगा। महावीर में ऐसी कोई धारणा नहीं है जो तर्क से सिद्ध न होती हो। महावीर कोई ऐसी बात नहीं कहते जिसे तार्किक रूप से प्रमाणित न किया जा सके। इसलिए महावीर परमात्मा की बात ही नहीं करते, न बुद्ध करते हैं। बुद्ध तो और एक कदम आगे गये-वे आत्मा की बात भी नहीं करते, क्योंकि उसे भी तर्क से सिद्ध करने का कोई उपाय नहीं।
पश्चिम के एक बहुत बड़े विचारक लुडविग विडगिस्टीन ने इस सदी की एक बहुत महत्वपूर्ण किताब लिखी है। उस किताब का एक सूत्र है : 'जो कहा न जा सके उसे भूल कर कहना नहीं है। जो वाणी में न आ सके, उसे लाने की कोशिश भी मत करना। अन्यथा अन्याय होता है, अत्याचार होता है।'
विडगिस्टीन ठीक महावीर और बुद्ध की परंपरा में पड़ता है वही तर्क-दृष्टि। महावीर ऐसी कोई बात नहीं कहते जिसको तर्क से सिद्ध न किया जा सके।
इसलिए महावीर में काव्य बिलकुल नहीं है, क्योंकि कविता को कैसे सिद्ध करोगे! कविता सिद्ध थोड़े ही होती है। कोई उसकी मस्ती में आ जाये, आ जाये; न आये तो सिद्ध करने का कोई उपाय नहीं है। और सिद्ध करने कविता को चलो तो मर जाती है कविता। अगर कोई तुमसे पूछ ले इस कविता का अर्थ क्या, तो भूल कर अर्थ मत बताना। क्योंकि अर्थ अगर बताने में लगे और विश्लेषण किया उसी में तो कविता मर जाती है। पकड़ में आ जाये, झलक में आ जाये, तो ठीक; न आये तो बात गई। फिर उसे पकड़ में लाने का उपाय नहीं।
___ महावीर साफ-सुथरे हैं, तर्कयुक्त हैं, बुद्ध भी। श्रद्धा की कोई बात नहीं है। मानने का कोई सवाल नहीं है। जो भी है, वह जाना जा सकता है। इसलिए बुद्धि की, मेधा की पूरी चेष्टा आवश्यक है। ब्राह्मण-विचार में बुद्धि की चेष्टा ही बाधा है। तुम जब तक बुद्धि से चेष्टा करते रहोगे तब तक तुम्हारी चेष्टा ही तुम्हारा कारागृह बनी रहेगी। क्योंकि कुछ है जो बुद्धि से जाना जा सकता है, कुछ है जो बुद्धि से जाना नहीं जा सकता, क्योंकि कुछ बुद्धि के आगे है और कुछ बुद्धि के पीछे है। एक बात तो तय है कि तुम बुद्धि के पीछे हो। तुम बुद्धि के आगे नहीं हो। तुम्हारे ही पीछे खड़े होने के कारण तो बुद्धि चलती है। तो तुम्हें तो बुद्धि नहीं समझ सकती; पीछे लौटकर तुम्हें कैसे समझेगी? तुम्हारे सहारे ही समझती है, तो तुम्हारे बिना तो चल ही नहीं सकती।