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कर गया है कौन फिर भिनसार, वीणा बोलती है छू गया है कौन मन के तार, वीणा बोलती है। मृदु मिट्टी के बने हुए मधुघट फूटा ही करते हैं लघु जीवन ले कर आये हैं प्याले टूटा ही करते हैं फिर भी मदिरालय के अंदर मधु के घट हैं, मधु प्याले हैं।
जो मादकता के मारे हैं वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है जिसकी ममता घट, प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई।
छू गया है कौन मन के तार, वीणा बोलती है!
वह कच्चा पीने वाला है जिसकी ममता घट, प्यालों पर!
रूप में जो उलझ गया, आकृति में जो उलझ गया, अरूप को न पहचाना, आकृति - अतीत को न पहचाना, वह कच्चा पीने वाला है। जिसने राम में देख लिया, रावण में न देखा वह पक्षपाती है, अंधा है। अंधे के पक्षपात होते हैं; आंख वाले के पक्षपात नहीं होते। आंख वाला तो उसे सब जगह देख लेता है, हर जगह देख लेता है।
अट्ठारह सौ सत्तावन की गदर में एक नग्न संन्यासी को एक अंग्रेज सैनिक ने छाती में भाला भोंक दिया। भूल से! यह नंगा फकीर गुजरता था। रात का वक्त था। यह अपनी मस्ती में था। सैनिकों की शिविर के पास से गुजरता था, पकड़ लिया गया। लेकिन इसने पंद्रह वर्ष से मौन ले रखा था। यह तो उन्हें पता न था। एक तो नंगा, फिर बोले न -लगा कि जासूस है । लगा कि कोई उपद्रवी है। बोले न, चुप खड़ा मुस्कुराये तो और भी क्रोध आ गया। उसने कसम ले रखी थी कि मरते वक्त ही बोलूंगा, बस एक बार तो जिस अंग्रेज सैनिक ने उसकी छाती में भाला भोंका, भाले के भोंकने पर वह बोला। उसने कहा : 'तू मुझे धोखा न दे सकेगा। मैं तुझे अब भी देख रहा हूं । तत्वमसि और वह मर गया।'वह तू ही है! तू मुझे धोखा न दे सकेगा। तू हत्यारे के रूप में आया आ, लेकिन एक बार तुझे पहचान चुका तो अब तू किसी भी रूप में आ फर्क नहीं पड़ता । '
उसे अपने हत्यारे में भी प्रभु का दर्शन हो सका। मुक्त हो गया यह व्यक्ति, इसी क्षण हो गया। इसकी मृत्यु न आई-यह तो मोक्ष आया । इस भाले ने इसे मारा नहीं: इस भाले ने इसे जिलाया, शाश्वत जीवन में जगाया।
किं पृथक भासते स्वर्णात्कटकांगदनूपुरम्।
अलग- अलग दिखाई पड़ते हैं तुम्हें स्वर्ण के आभूषण, तो फिर तुम अंधे हो। सबके भीतर एक ही सोना है। ऊपर के आकार से क्या भेद पड़ता है।
तो दो बातें इस सूत्र में हैं। एक कि जो तुम्हें दिखाई पड़ता है, तुम्हीं हो। सारा जगत दर्पण है और सारे संबंध भी। सारे अनुभव दर्पण हैं और सारी परिस्थितियां भी । तुम ही अपने को झांक-झांक