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में तुम्हारा ही कुछ तो दिखाई नहीं पड़ा है? तुम्हारा अहंकार ही तो नहीं इसको चोट कर गया, तिलमिला गया? यह तुम्हारे अहंकार की ही लौटती हुई प्रतिध्वनि तो नहीं है?'
अगर अहंकार न हो तो तुम्हारा कोई अपमान नहीं कर सकता है। अपमान का उपाय ही नहीं | तुमने कभी देखा, पैर में चोट लग जाये तो फिर दिन भर उसी-उसी में चोट लगती है! देहरी से निकले, देहरी की लग जाती है; दरवाजा खोला, दरवाजा लग जाता है; जूता पहनते, जूता लग जाता है। छोटा बच्चा आ कर उसी पर चढ़ जाता है। तुम बड़े हैरान होते हो कि आज क्या सबने कसम खा ली है कि जहां मुझे चोट लगी है वहीं चोट मारेंगे! नहीं, किसी ने कसम नहीं खा ली, किसी को पता भी नहीं है। लेकिन जहां तुम्हें चोट लगी है अगर कल वहां किसी ने पैर रखा होता तो पता न चलता, आज पता चल जाता है, प्रतिध्वनि होती है क्योंकि चोट है।
अहंकार घाव की तरह है। घाव तुम्हीं लिए चलते हो, जरा धक्का लगा किसी का और चोट वहां पहुंच जाती है। कोई तुम्हें चोट पहुंचाने के लिए आतुर भी नहीं है फुर्सत किसको है! लोग अपने ही जीवन में इतने उलझे हैं कि किसके पास समय, किसके पास सुविधा है कि तुम्हारा अपमान करें। इसलिए कई बार ऐसा होता है कि तुम अपमानित हो जाते हो और जब तुम कहते हो दूसरे व्यक्ति को कि तूने मेरा अपमान किया, वह चौंकता है। वह कहता है, 'क्या कह रहे हैं? मैंने तो ऐसी कोई बात नहीं की। और यह दुश्मनों की तो छोड़ दें, जिसको हम प्रियजन कहते हैं, मित्र कहते हैं, उनके साथ रोज होता है। पति कुछ कहता है, पत्नी कुछ सुन लेती है। और पति लाख समझाये कि यह मैंने कहा नहीं, तो वह कहती है 'अब बदलो मत! यही तुमने कहा है। पत्नी कुछ कहती है, पति कुछ अर्थ लगा लेता है। अर्थ तुम अपने भीतर से लगाते हो। जो सुनते हो, वही नहीं सुनते हो। फिर जहां चोट लगी हो, वहां चोट पहुंचती है। लेकिन तुम्हारी चोट के कारण ही ऐसा होता है।
___एक छोटा बच्चा डाक्टर से अपने हाथ में हुए फोड़े का आपरेशन कराने गया था। आपरेशन करके जब वह पट्टी बांधने लगा तो बायें हाथ का आपरेशन किया था, उसने बायां हाथ पीछे छिपा लिया और दायां हाथ आगे कर दिया। उसने कहा, पट्टी इस पर बांधे। डाक्टर ने कहा : 'तू पागल हुआ है बेटे! स्कूल में जाएगा, चोट लग जाएगी। यह पट्टी तो चोट से बचाने के लिए ही बांध रहा हूं। उसने कहा : 'आप स्कूल के बच्चों को नहीं जानते हैं; जहां पट्टी बंधी हो, वहीं चोट मारते हैं। आप पट्टी इस हाथ पर बांध दो; उनका उस पर ध्यान ही न जाएगा।'
वह बच्चा भी ठीक कह रहा है, थोड़े-से अनुभव से कह रहा है। क्योंकि जहां पट्टी बंधी हो वहीं चोट लगती है; मारता है कोई, ऐसी बात नहीं। तो वह कहता है, दूसरे हाथ में बांध दो। चोट इसमें लगती रहेगी और जिसमें चोट है वह बचा रहेगा।
तुम जीवन में गौर से देखोगे तो तुम पाओगे यही हो रहा है यही होता है। जो तुम्हें दिखाई पड़ता है वह तुम्हारी छाया है। तुम अपने को ही देख कर उलझ जाते हो।
और ध्यान रखना कि बाहर ये जो इतने-इतने अनेक रूप दिखाई पड़ रहे हैं, एक ही समुद्र में, एक ही चैतन्य के सागर में अलग-अलग लहरें हैं। तुम भी एक लहर हो और ये भी सब लहरें