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आपकी पुस्तकें पढ़ने से ऊब आती है। ध्यान करने की इच्छा भी नहीं होती। और टेपबद्ध प्रवचन सुनने की इच्छा नहीं के बराबर है। आपके प्रवचन में भी मुझे पता चल जाता है कि आप ऐसा ही कहेंगे। फिर भी रूपांतरण नहीं होता, ऐसा क्यों? और रूपांतरण नहीं हुआ है तो फिर पढ़ने, सनने और ध्यान करने में ऊब क्यों अनुभव होती है? और प्रभु, रोज-रोज एक ही बात दोहराने में क्या आपको ऊब नहीं आती?
ब को समझना चाहिए। ऊब क्या है? ऊब के बहुत कारण हो सकते हैं। पहला कारण : जो तुम्हारी समझ में न आये, और उसे बार-बार सुनना पड़े, तो ऊब स्वाभाविक है। बार-बार सुनने से ऐसा समझ में भी आने लगे कि समझ में आ गया, और समझ में न आये, क्योंकि समझ में आ जाना कि समझ में आ गया-समझ में आ जाना नहीं है। बार-बार सुनने से ऐसा लगने लगता है, परिचित शब्द हैं, परिचित बात है। मेरी शब्दावली कोई बहुत बड़ी तो नहीं है मुश्किल से तीन-चार सौ शब्द। मैं कोई पंडित तो हूं नहीं उन्हीं-उन्हीं शब्दों का बार-बार उपयोग करता हूं।
तो बार-बार सुनने से तुम्हें समझ में आने लगता है कि समझ में आ गया। और समझ में कुछ भी नहीं आया। क्योंकि समझ में आ जाये तो रूपांतरण हो जाये। समझ तो क्रांति है। तो जब तक क्रांति न हो, तब तक समझना अभी समझ में नहीं आया।
और तुम्हें जब तक समझ में न आये, तब तक मुझे दोहराना पड़ेगा। तुम्हें समझ में न आये और मैं आगे का पाठ करने लगू तो बात गड़बड़ हो जायेगी। तब तो तुम कभी भी न समझ पाओगे। अभी तो पहला पाठ ही समझ में नहीं आया।
___ तुमने महाभारत की कथा सुनी होगी। पहला पाठ द्रोण ने पढ़ाया है। अर्जुन पढ़ कर आ गया दुर्योधन पढ़ कर आ गया, सब विदयार्थी पढ़ कर आ गये। युधिष्ठिर ने कहा कि अभी मैं नहीं तैयार कर पाया, कल करूंगा। कल भी बीत गया, परसों भी बीत गया, दिन पर दिन बीतने लगे। द्रोण तो बहुत हैरान हुए क्योंकि सोचा था युधिष्ठिर सबसे प्रतिभाशाली होगा। वह शांत था, सौम्य था, विनम्र था। सब विद्यार्थी आगे बढ़ने लगे। कोई दसवें पाठ पर पहुंच गया कोई बारहवें पाठ पर पहुंच गया यह पहले पर अटका है। यह तो बड़ी गड़बड़ हो गयी। एक सप्ताह बीतते -बीतते तो गुरु का धैर्य भी टूट गया। और उन्होंने पूछा कि मामला क्या है? पहले पाठ में ऐसी अड़चन क्या है?
युधिष्ठिर ने कहा. जैसा और करके आये हैं, अगर वैसा ही मुझसे भी करने को कहते हों तो कोई अड़चन नहीं है।
पहला पाठ था, उसमें वचन था : सत्य बोलो। सब याद करके आ गये कि पहला पाठ, सत्य बोलो। युधिष्ठिर ने कहा, लेकिन तब से मैं सत्य बोलने की कोशिश कर रहा हूं अभी तक सध नहीं पाया, अभी झूठ हो जाता है। तो जब तक सत्य बोलना न आ जाये, दूसरे पाठ पर हटना कैसे?