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ल भी बोलता रह सकता हूं। इससे कुछ अंतर ही नहीं पड़ता। यह तो ध्यान का एक प्रयोग है। और जो यहां बैठ कर मुझे सच में समझे हैं, वे अब इसकी फिक्र नहीं करते कि मेरे शब्द क्या हैं, मैं क्या कह रहा हूं -अब तो उनके लिए यहां बैठना एक ध्यान की वर्षा है।
फिर अगर तुम पहले से कुछ सुनने का आग्रह ले कर आये हो तो मुश्किल हो जाती है। तुम अगर मान कर चले हो कि ऐसी बात सुनने को मिलेगी, कि मनोरंजन होगा, कि ऐसा होगा, वैसा होगा-तो अड़चन हो जाती है। तुम अगर खाली-खाली आये हो कि जो होगा देखेंगे, तो अड़चन नहीं होती।
एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन अपनी पत्नी से झगड़ कर काम पर जा रहा था। गुस्से में था, गुस्से से भरा था कि रास्ते में किसी ने पूछा : बड़े मियां, आपकी घड़ी में समय क्या है? वह बोला तुमको इससे क्या मतलब?
झगड़े से भरा आदमी! कोई घड़ी में समय भी पूछ ले तो वह कहता है : 'तुमको इससे क्या मतलब?' बजा होगा जो बजा होगा मेरी घड़ी में। घड़ी मेरी है, तुम्हें इससे क्या मतलब? एक धुआं है उसकी आंख पर-उससे ही चीजों को देखने की वृत्ति होती है।
तो तुम अगर कुछ धुआं ले कर आ गये हो-किसी भी तरह का धुआं लगाव का, विरोध का-तो अड़चन होगी। अगर तुम इसलिए भी आ गये हो कि कुछ नया सुनने को मिलेगा तो अड़चन होगी। मैंने कुछ ऐसा आश्वासन दिया नहीं। तुम अगर खाली-खाली आ गये हो कि मेरे पास बैठना मिलेगा। घड़ी भर मेरे पास होने का मौका मिलेगा। बोलना तो बहाना है। सुनना तो बहाना है। थोड़ी देर साथ-साथ हो रचेंगे, एक धारा में बह लेंगे तो फिर जो भी तुम सुनोगे वही सार्थक होगा। उसी में रसधार बहेगी। तो तुम्हारे सुनने पर निर्भर करता है।
और यह बात तो 'समाधि' को भी समझ में आती है कि रूपांतरण नहीं हुआ है। 'तो फिर पढ़ने, सुनने और ध्यान करने में ऊब क्यों अनुभव होती है?'
शायद रूपांतरण तुमने चाहा भी नहीं है अभी।'समाधि' को मैं जानता हूं। शायद रूपांतरण की अभी चाह भी नहीं है। चाह शायद कुछ और है। और वह चाह पूरी नहीं हो रही। किसी को धन चाहिए; धन नहीं मिल रहा है, सोचता है चलो धर्म में ध्यान लगा दें। मगर भीतर तो चाह धन की है। किसी को प्रेम चाहिए; प्रेम नहीं मिल रहा है, वह सोचता है चलो, किसी तरह अपने को धर्म में उलझा लें ध्यान में लगा लें लेकिन भीतर तो प्रेम की खटक बनी है। तो अपने भीतर खोजो।
रूपांतरण जिसको चाहिए उसका हो कर रहेगा। लेकिन तुम्हें चाहिए ही न हो, तुम कुछ और चाहते होओ और यह रूपांतरण की बात केवल ऊपर-ऊपर से लपेट ली हो, यह केवल आभूषण मात्र हो, यह केवल बहाना हो कुछ छिपा लेने का तो अड़चन हो जायेगी। फिर यह न हो सकेगा। फिर तुम वही सुनना चाहोगे जो तुम सुनना चाहते हो।
अभी ऐसा हुआ कि बुद्ध के सूत्रों पर जब मैं बोल रहा था तो बुद्ध ने तो ऐसी बातें कही हैं जो कि पश्चिम से आने वाले यात्रियों को नहीं जंचती हैं। उसके पहले मैं हसीद फकीरों पर बोल रहा