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मोह से देखने लगता है। बीस साल कोई छोटा वक्त नहीं होता। फ्रांस में क्रांति हुई तो फ्रांस का जो सबसे बड़ा किला था बेस्तिले का, वह तोड़ दिया क्रांतिकारियो ने। वहां आजन्म कैदी ही रहते थे। कोई पचास साल से कैद था। एक तो ऐसा कैदी था जो सत्तर साल से कैद था। सत्तर साल तक हथकड़ियां -बेड़ियां! और बेस्तिले में जो कैदी भरती होते थे, उनकी हथकड़ियों में ताला नहीं होता था, क्योंकि वे तो आजन्म कैदी थे; वह तो हथकड़ी बंद कर दी जाती
थी, बेड़ी जोड़ दी जाती थी। वे तो मरेंगे तभी पैर काट कर निकलते थे, हाथ काट कर निकलते थे। जिंदा में तो उनको छुटना नहीं है। सत्तर साल तक जो आदमी बेड़ी-हथकड़ियों में बंधा हुआ एक कोठरी में पड़ा रहा है, जहां सूरज की रोशनी नहीं आई, उसको तुम सोचो, अचानक तुम छोड़ दो..!
क्रांतिकारियों ने तो सोचा कि हम बड़ी कृपा कर रहे हैं। उन्होंने बेस्तिले का किला तोड़ दिया और सारे कैदियों को-कोई तीन-चार हजार कैदी थे-सबको मुक्त कर दिया। वे तो समझे कि हम बड़े मुक्तिवाहक हो कर आये हैं, कल्याण करने आये हैं, कैदी हमसे प्रसन्न होंगे। लेकिन कैदी प्रसन्न न हुए और कैदियों ने कहा : हमें यह पसंद नहीं है, हम बिलकुल ठीक हैं, हम जैसे हैं ठीक हैं। लेकिन क्रांतिकारी तो जिद्दी होते हैं। वे तो यह सुनते ही नहीं कि तुम्हें क्रांति करवानी है कि नहीं करवानी। उन्होंने तो जबर्दस्ती हथकडिया तुड़वा कर बाहर निकाल दिया।
रात चकित हुए, आधी रात होते -होते आधे कैदी वापिस लौट आये और उन्होंने कहा हमें नींद भी नहीं आ सकती बिना हमारी हथकड़ियों के। पचास साल, साठ साल, सत्तर साल हथकड़ियां हाथ में रहीं, बेड़ियां पैर में रहीं तो ही हम सो पाये, अब तो हमें नींद भी नहीं आ सकती। वह वजन चाहिए, उस वजन के बिना नींद नहीं आती। उस वजन के बिना हम नंगे -नंगे मालूम होते हैं, कुछ खाली-खाली मालूम होते हैं। और अब जायें कहां? बाहर बहुत डर लगता है। आंखें अंधेरे की आदी हो गई हैं। रोशनी घबडाती है।
बेस्तिले की कथा बड़ी महत्वपूर्ण है। यह वास्तविक घटना है और बेस्तिले के कैदी तो सत्तर साल, पचास साल ही रहे थे, मनुष्य की कैद' तो बड़ी प्राचीन है, सनातन है। जन्मों -जन्मों से हम सीमा में रहे हैं। कभी वृक्ष की सीमा थी, कभी जानवर की, सीमा थी, कभी पक्षी की सीमा थी। अब आदमी की सीमा है। हम सीमा में ही रहे हैं अनंत- अनंत काल से। हम बेस्तिले में कैद हैं अनंतअनंत काल से, आज अचानक जब घड़ी आयेगी मुक्ति की और कोई अष्टावक्र हमें मुक्त करने आ जायेगा तो स्वाभाविक है कि हमारा मोह प्रबल हो उठे, हमारी पुरानी आदत कहे 'यह क्या करते हो? नहीं, रुक जाओ। अज्ञात में मत रखो चरण। अंधेरे में मत जाओ। अतीत की रोशनी जरूरी है। परंपरा में जीयो।'
ध्यान रखना, श्रद्धा बड़ी क्रांतिकारी घटना है। आमतौर से लोग उल्टा समझते हैं। आमतौर से लोग समझते हैं जो श्रद्धालु है, वह परंपरागत, ट्रेडिशनल है। इससे ज्यादा मूढ़तापूर्ण कोई बात नहीं हो सकती। श्रद्धावान व्यक्ति बिलकुल ही नानट्रेडिशनल होता है, उसकी कोई परंपरा हो ही नहीं सकती। श्रद्धा की-और परंपरा! परंपरा तो होती है अतीत की। अतीत का होता है विश्वास। श्रद्धा तो होती है