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ये दोनों द्वार खुलते हैं।
मनुष्य नीचे भी जा सकता है, ऊपर भी जा सकता है। ऊपर जाने की संभावना इसीलिए है कि नीचे गिर जाने की भी संभावना है। और सीढ़ी तो निरपेक्ष है, निष्पक्ष है। सीढ़ी यह न कहेगी कि नीचे न जाओ; सीडी यह न कहेगी कि ऊपर न जाओ। यह फैलाव बहुत बड़ा है। नीचे - ऊपर दोनों तरफ अतल दिखाई पड़ता है। तुम घबड़ा जाते हो। तुम कहते हो. अपने पायदान पर, अपने सोपा पर बैठे रहो आंख बंद किये, यहीं भले हो। यह तो बड़ा लंबा मामला दिखता है। कहां जाओगे ? यहां तो पत्नी है, बच्चे हैं, घर-द्वार है; बैंक में बैलेंस भी है छोटा-मोटा । सब काम ठीक चल रहा है। कहां जाते हो नीचे!
दिखता है महा अंधकार । वह भी घबड़ाता है। ऊपर ऊपर दिखता है महा प्रकाश । वह भी आंखों को चौंधियाता है। तुम दोनों से घबड़ा कर अपने ही पायदान को जोर से पकड़ लेते हो। तो तुम सुनना नहीं चाहते। सुनना चाहो तो सिर ऊपर उठने लगेगा। सुनना चाहो ।
इसलिए इस ढंग से कहता कि कुछ-कुछ तुम्हारा मन भी तृप्त होता रहे कि तुम भाग ही न जाओ। लेकिन अगर तुम्हारा मन ही तृप्त करता रहूं तो फिर मैं सदगुरु नहीं। फिर तो एक मनोरंजन हुआ। वही मनोरंजन चल रहा है दुनिया में। लोग कथा सुनने जाते हैं क्योंकि कथा में रस आता है। यह भी कोई बात हुई? यह तो ऐसा हुआ कि हीरे-जवाहरात ले गये और बाजार में बेच कर कुछ सड़ी मछलियां खरीद लाये, क्योंकि मछलियों में रस आता है। रस रस की बात है।
मैंने सुना, एक स्त्री गांव से लौटती थी बेचकर अपनी मछलियां, धूप तेज थी, थकी-मांदी थी, गिर गयी, बेहोश हो गयी। भीड़ लग गयी। जहां वह गिर कर बेहोश हुई वह गधियों का बाजार था, सुगंध बिकती थी। एक गंधी भागा हुआ आया और उसने कहा कि यह इत्र इसे सुधा दो इससे ठीक हो जायेगी। उसने इत्र सुंघाया। बड़ा कीमती इत्र था, राजा-महाराजाओं को मुश्किल से मिलता था। लेकिन गरीब औरत के लिए दया करके वह ले आया। वह तो तड़पने लगी। वह तो हाथ-पैर फेंकने लगी। पास ही भीड़ में कोई एक मछुआ खड़ा था, तो उसने कहा : 'महाराज, आप मार डालेंगे। हटाओ इसको ! मैं मछुआ हूं, मैं जानता हूं कौन-सी गंध उसके पहचान की है । '
उसने जल्दी से अपनी टोकरी..... वह भी मछलियां बेच कर लौटा था, उसकी टोकरी थी गंदी जिसमें मछलियां लाया था, उसमें उसने थोड़ा-सा पानी छिड़का और उस स्त्री के सिर पर रख दिया, मुंह पर रख दिया। उसने गहरी सांस ली, वह तप्क्षण होश में आ गयी। उसने कहा कि बड़ी कृपा की। किसने यह कृपा की? यह कोई मुझे मारे डालता था! ऐसी दुर्गंध मेरे नाक में डाली... I
सुगंध दुर्गंध हो जाती है अगर आदी न होओ। दुर्गंध सुगंध मालूम होने लगती है अगर आदी
होओ।
तो एकदम तुम्हारी नाक के सामने परमात्मा का इत्र भी नहीं रख सकता हूं। और तुम लाख चाहो कि तुम्हारी मछलियां और उनकी गंध और टोकरी पर पानी छिड़क कर तुम्हारे सिर पर रखूं -वह भी नहीं कर सकता हूं। तो धीरे-धीरे तुम्हें परमात्मा की तरफ ले जाना है मछलियों की गंध से। तुम