________________
अच्छा हुआ कि प्रसिद्धि में सफल न हुए लेखक - पत्रकार बन जाते तो अहंकार मजबूत हो जाता। अहंकार जितना मजबूत हो जाये उतना ही परमात्मा की तरफ जाना मुश्किल हो जाता है। पापी भी पहुंच जाये, अहंकारी नहीं पहुंचता है। पापी भी थोड़ा विनम्र होता है, कम से कम अपराध के कारण ही विनम्र हो गया होता है कि मैं पापी हूं। लेकिन जिसने दो-चार किताबें लिख लीं, अखबार में नाम छप जाता है-लेखक हो गया, कवि हो गया, चित्रकार, मूर्तिकार - वह तो अकड़ कर खड़ा हो जाता
है।
तुमने कभी खयाल किया कि अक्सर लेखक, चित्रकार, कवि नास्तिक होते हैं - अक्सर ! पत्रकार अक्सर क्षुद्र बुद्धि के लोग होते हैं। उनके जीवन में कोई विराट कभी महत्वपूर्ण नहीं हो पाता। बड़ी अकड़.....!
अच्छा हुआ, हारे! तुम्हारी हार में परमात्मा की जीत है। तुम्हारे मिटने में ही उसके होने की गुंजाइश है। और फिर राजनीतिज्ञ होना चाहते थे- वह तो बड़ी कृपा है उसकी कि न हो पाये। क्योंकि मैंने सुना नहीं कि राजनीतिज्ञ कभी स्वर्ग पहुंचा हो। और राजनीति स्वर्ग की तरफ ले भी नहीं सकती। राजनीति का पूरा ढांचा नारकीय है। राजनीति की पूरी दाव-पेंच, चाल-कपट - सब नर्क का है। नर्क का एक बड़े से बड़ा कष्ट यह है कि वहां तुम्हें सब राजनीतिज्ञ इकट्ठे मिल जायेंगे। आग-वा से मत डरना-वह तो सब पुरानी कहानी है। आग तो ठीक ही है। आग में तो कुछ हर्जा नहीं है बड़ा | लेकिन सब तरह के राजनीतिज्ञ वहां मिल जायेंगे तुम्हें। उनके दाव पेंच में सताये जाओगे। नर्क का सबसे बड़ा खतरा यह है कि सब राजनीतिज्ञ वहां हैं। हालाकि जब भी कोई राजनीतिज्ञ मरता है, हम कहते हैं, स्वर्गीय हो गये। अभी तक सुना नहीं ।
एक दफा, कहते हैं, एक राजनीतिज्ञ किसी भूल-चूक से स्वर्ग पहुंच गया। चाल-तिकडम से पहुंच गया हो। जब वह पहुंचा स्वर्ग पर उसी वक्त दो साधु भी मर कर पहुंचे थे। साधु बड़े हैरान हुए। उन्हें तो हटा कर खड़ा कर दिया गया। और राजनीतिज्ञ का बड़ा स्वागत हुआ। लाल दरियां बिछायी गयीं। बैंड-बाजे बजे! फूल बरसाये गये! साधुओं के हृदय में तो बड़ी पीड़ा हुई कि यह तो हद हो गयी। यही पापी वहां भी मजा कर रहे थे, जमीन पर भी, यही मजा यहां भी कर रहे हैं। और हम तो कम से कम इस आशा में जीये थे, कम से कम स्वर्ग में तो स्वागत होगा; यहां भी पीछे खड़े कर दिये गये। तो वह जो जीसस ने कहा है कि जो यहां अंतिम हैं प्रथम होंगे, सब बकवास है। जो यहां प्रथम हैं वे वहां भी प्रथम रहते हैं - ऐसा मालूम होता है। कम से कम यहां तो इसको पीछे कर देना था, हमें आगे ले लेना था।
लेकिन चुप रहे। अभी नये-नये आये थे। एकदम कुछ बात करनी ठीक भी न थी। बड़ी देर लगी। स्वागत-समारोह, सारंगी और तबले और सब वाद्य बजे और अप्सराएं नाची । खड़े देखते रहे दरवाजे पर, उनको तो भीतर भी किसी ने नहीं बुलाया। जब राजनीतिज्ञ चला गया सारे शोर सपाटे के बाद और फूल पड़े रह गये रास्तों पर, तब उन्हें भी अंदर ले लिया। सोचते थे कि शायद अब हमारा भी स्वागत होगा, लेकिन कोई स्वागत इत्यादि न हुआ । न बैड-बाजे, न कोई फूल-माला लाया। आखिर