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अकड़ और गहरी हो गयी। तुम्हारा अहंकार और मजबूत हुआ कि यह तो मैं पहले से ही समझता था। सदगुरु न तो तुम्हारा मनोरंजन करता है, क्योंकि मनोरंजन क्या करना है पर मनोभंजन करना है। मनोरंजन तो बहुत हो चुका। मनोरंजन कर करके ही तो तुम ने गंवाए न मालूम कितने जन्म, न मालूम कितने जीवन! मनोरंजन कर-करके ही तो तुम भटके हो सपने में। अब तो सपना तोड़ना है। लेकिन इतने झटके से भी नहीं तोड़ना है कि तुम दुश्मन हो जाओ, आहिस्ता-आहिस्ता तोड़ना है; धीरे- धीरे तोड़ना है।
तुम्हें जगाना है। तुम्हें जगाना है तो यह बात ध्यान रखनी होगी, तुम्हारा ध्यान रखना होगा और जहां तुम्हें जगाना है, जिस परमलोक में तुम्हें उठाना है, उसका भी ध्यान रखना होगा।
जब मैं तुमसे बोल रहा हूं तो तुमसे भी बोल रहा हूं और तुम्हारे पार भी बोल रहा हूं। जब मैं देखता हूं बात बहुत पार जाने लगी तो मुल्ला नसरुद्दीन को निमंत्रण कर लेता हूं। वह तुम्हारे जगत में तुम्हें खींच लाता है। तुम थोड़ा हंस लेते हो, तुम थोड़ा मनोरंजित हो जाते हो। जैसे ही मैंने देखा कि तुम हंस लिये, फिर आश्वस्त हो गये; फिर तुम्हें हिलाने लगता हूं। फिर तुम्हें ऊपर की तरफ ले जाने लगता है।
मैं जानता हूं जो तुम्हारे हित में है वह रुचिकर नहीं; और जो तुम्हें रुचिकर है, वह तुम्हारे हित में नहीं। तुम्हें जहर खाने की आदत पड़ गयी है। तुम्हें गलत के साथ जीने की. वही तुम्हारी जीवन-शैली हो गयी है। उससे तुम्हें हटाने के लिए बड़ी कुशलता चाहिए। और कुशलता का जो महत्वपूर्ण हिस्सा है, वह यही है कि तुमसे बात ऐसी भी न कही जाये कि तुम भाग ही खड़े होओ और तुमसे बात ऐसी भी न कही जाये कि तुम बिलकुल ही समझ लो। तुम्हें धक्का देना है। तुम्हें आकाश की तरफ ले चलना है।
और मैं पृथ्वी-विरोधी नहीं हं ध्यान रखना। पृथ्वी भी आकाश का ही हिस्सा है। पृथ्वी आकाश के अंगों में एक अंग है। तो मैं पृथ्वी विरोधी नहीं हूं। मैं तुम्हें पृथ्वी से उखाड़ नहीं लेना चाहता। मैं तो चाहता हूं, पृथ्वी में भी तुम्हारी जड़ें गहरी जायें, तभी तो तुम्हारा वृक्ष बादलों से बातें कर सकेगा, ऊंचा उठेगा, आकाश की तरफ चलेगा।
इसलिए मैंने संन्यास को संसार के विरोध में नहीं माना है। तुम बाजार में रहो। तुम जहां हो जैसे हो, जो तुम्हारी पृथ्वी बन गयी है, वहीं रहो। इतना ही ध्यान रखो कि पृथ्वी में जड़ें फैलाने का एक ही प्रयोजन है कि आकाश में पंख फैल जायें। पृथ्वी से रस लो आकाश में उड़ने का। पृथ्वी का सहारा लो। पृथ्वी के सहारे अडिग खड़े हो जाओ, अचल खड़े हो जाओ। लेकिन सिर तो आकाश में उठना चाहिए। जब तक बादल सिर के पास न घूमने लगे, तब तक समझना कि जीवन अकारथ गया; तुम कृतार्थ न हुए।
मैं तुम्हारी अड़चन समझता हूं तुम्हारी कठिनाई समझता हूं। लेकिन तुम्हें धीरे- धीरे इस नये रस के लिए राजी करना है। अभी जो तुम्हारे सिर पर से बहा जाता है, एक दिन तुम पाओगे तुम्हारे हृदय से बहने लगा।