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तो भीतर क्या है!
कभी सिनेमा देखा नहीं। स्वाभाविक जिज्ञासा है। तुम्हें हंसी आती है! क्योंकि तुमने देखा है, इसलिए तुम्हें कुछ अड़चन नहीं मालूम होती कि इसमें मामला क्या है लेकिन तुम जरा उस आदमी की सोचो, उसकी तरफ से सोचो।
मुझे बात समझ में आई। मैंने कहा कि ठीक है। मेरे पास एक जैन श्रावक आते थे, मैंने उनसे कहा कि देखें, इनको सिनेमा दिखा दें। बेचारे बुढ़ापे में यही भाव ले कर मरे तो अगले जन्म में सिनेमा में चौकीदारी करेंगे! इनको बचा लें! इनको उबार लें!
वे तो जैन थे। वे तो घबरा गये। उन्होंने कहा कि आप मुझे फसायेंगे। अगर समाज को पता चल गया कि मैं इनको ले गया हूं सिनेमा तो मैं तक झंझट में पगा। आप कहते हैं मेरी बात समझ में आ गई। मैं आपको सुनता हूं इसलिए समझ में भी आता है मगर मैं नहीं ले जा सकता।
मैंने कहा, कोई तो ले जाये इनको। किसी तरह तो इनको दिखा ही दो। इनको समझो।
उन्होंने कहा, मेरी समझ में आती है। फिर मैंने कहा, कुछ उपाय करो। उन्होंने कहा, फिर एक ही उपाय कर सकते हैं। तो जो कैनटोनमेट एरिया है, वहां अंग्रेजी फिल्में चलती हैं वहां कोई जैन वगैरह रहते नहीं और जाते भी नहीं, वहां इनको दिखा सकता हूं। मगर अंग्रेजी इनकी समझ में नहीं आती। मैंने उनसे पूछा कि कनक विजय जी, क्या विचार है? उन्होंने कहा कि कुछ भी हो, अंग्रेजी हो कि चीनी हो कि जापानी हो, मुझे दिखा दो।
कनक विजय अभी जिंदा हैं, उनसे आप पूछ ले सकते हैं। उनको ले गये वे, दिखा लाये वे। दिखा कर आये, बहुत हल्के हो कर आये। वे कहने लगे कि एक बोझ उतर गया अब कुछ भी नहीं है वहां। लेकिन अभी तक मैं एक बोझ से दबा था।
जीवन अनभोगा बीत जाये तो बहुत सा कचरा-कूड़ा इकट्ठा हो जाता है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि भोग से ही तुम मुक्त हो जाओगे। अगर भोगे भी सोये-सोये तो कभी मुक्त न होओगे। ऐसे लोग हैं जो साठ साल से निरंतर सिनेमा देख रहे हैं, फिर भी जा रहे हैं। तो यह नहीं कह रहा हूं कि जिन्होंने देख लिया, वे मुक्त हो गये हैं। जिन्होंने देख लिया, वे मुक्त हो सकते हैं अगर थोड़ी भी समझ हो। जिन्होंने नहीं देखा, उनकी तो बड़ी अड़चन है। समझ भी हो तो भी मुक्त होना कठिन है। क्योंकि जो जाना ही नहीं, उससे मुक्त कैसे होए? उससे उठें कैसे? उसका अतिक्रमण कैसे हो?
अष्टावक्र कहते हैं : न कुछ बुरा है न कुछ भला है। जो होता हो, उसे हो जाने देना। इसके लिए बड़ी हिम्मत चाहिए! इसके लिए अपूर्व साहस चाहिए! जो होता हो, हो जाने देना। मत रोकना। मत जीवन की धारा के विपरीत लड़ना। बह जाना धारा में। जो होता हो, हो जाने देना। क्या है खोने को यहां? क्या है पाने को यहां? और एक बार तुम अगर हिम्मत से, साहस से बह गये और जागे रहे, देखते रहे जो हो रहा है-एक दिन पाओगे कि तुम साक्षी हो गये। जो हो रहा है वह प्रकृति की लीला है. वह सब स्वभाव है। तरंगें उठ रही हैं!
'हे तात, तू चैतन्यरूप है। तेरा यह जगत तुझसे भिन्न नहीं। इसलिए हेय और उपादेय की