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क्षुद्र, बड़ी सीमा में बंधे, हजार-हजार सीमाओं में बंधे! यह तुमने जाना है। आज अचानक मैं तुमसे कहता हूं 'तुम भगवान हो, श्रद्धा नहीं होती। तुम कहते हो : ' भगवान और मैं! कहां की बात कर रहे. आप! मैं तो जैसा अपने को जानता हं. महापापी हं। हजार पाप करता हं चोरी करता हं जआ खेलता हूं शराब पीता हूं। फिर भी मैं कहता हूं. तुम भगवान हो! ये तुमने जो सीमायें अपनी मान रखी हैं, ये तुम्हारी मान्यता में हैं। और जिस दिन तुम हिम्मत करके इन सीमाओं के ऊपर सिर उठाओगे, अचानक तुम पाओगे कि सब सीमायें गिर गईं। तुम्हारा वास्तविक स्वरूप असीम है।
जब जागने की घड़ी आती है, तब गुरु को बड़े जोर से यह तुमसे कहना पड़ता है कि तुम भगवान हो। क्योंकि सीमायें पुरानी हैं, उनके संस्कार लंबे हैं, अति प्राचीन हैं और यह जो नई किरण उतर रही, बड़ी नई और बड़ी कोमल है! अगर अतीत से मोह पकड़ लिया और कहा कि मैं तो पापी हूं मैंने तो कैसे-कैसे पाप किए हैं...!
मेरे पास कोई आता है। वह कहता है. 'मैं संन्यास के योग्य नहीं।' मैं कहता हूं : 'तुम फिक्र छोड़ो! मैं तुम्हें योग्य मानता हूं। तुम मेरी सुनो। वह कहता है कि नहीं, आप कुछ भी कहें, मैं संन्यास के योग्य नहीं। मैं तो सिगरेट पीता हूं। तो मैं कहता हूं: पीयो भी। अगर संन्यास ऐसा छोटा-मोटा हो कि सिगरेट पीने से खराब हो जाये तो दो कौड़ी का है। उसका कोई मूल्य ही नहीं। यह भी कोई संन्यास हुआ कि सिगरेट पी ली तो खत्म हो गया। अगर संन्यास में कुछ बल है तो सिगरेट जायेगी, सिगरेट के बल से संन्यास रोकोगे?
___ कोई आ जाता है। वह कहता है : 'मैं शराब पीता हूं। मैं कहता हूं तू फिक्र छोड़ पी। हम कुछ बड़ी शराब तुझे देते हैं, अब देखें कौन जीतता है।
जब भी अतीत और भविष्य में संघर्ष हो, भविष्य की सुनना। क्योंकि भविष्य है-जो होना है। अतीत तो वह है जो हो चुका। अतीत तो वह है जो मर चुका, राख है। अब अंगार वहां नहीं रहा; अब वहां से तो सब जीवन हट गया। अब तो पिटी-पिटाई लकीर रह गई है, जिस पर तुम चले थे कभी। उड़ती धूल रह गई, कारवां तो निकल गया। अतीत की मत सुनना। अतीत की सुनने की वृत्ति होती है, क्योंकि उसे हम जानते हैं।
हमारी हालत करीब-करीब ऐसी है जैसे कोई आदमी कार चलाता हो और आगे देखता ही न हो। वह जो रीयर-ब्यू मिरर लगा होता है बगल में, बस उसी में देख कर कार चलाता हो, पीछे की तरफ देखता हो और आगे देखता ही न हो। उसके जीवन में दुर्घटना न होगी तो क्या होगा! हम जीवन को ऐसे ही चला रहे हैं-पीछे की तरफ देखते हैं और आगे की तरफ जा रहे हैं। देख सकते हो पीछे की तरफ, जाना तो आगे की तरफ ही पड़ेगा। तो अगर आंखें पीछे लगी रहीं और जाना आगे हुआ, दुर्घटना न होगी तो क्या होगा! यह तो अंधी हो गई यात्रा।
जहां जा रहे हो, वहीं देखो भी इसका नाम श्रद्धा है। भविष्य में जा रहे हो। भविष्य है अनजाना, अपरिचित। उस पर श्रद्धा रखो। अगर डांवांडोल हुए, घबड़ाये, तो तुम मोह से भर जाओगे।
जेलखाने से बीस वर्ष के बाद अगर कोई कैदी छूटता है तो अपनी हथकड़ियों की तरफ भी