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है : मैं चाहता हूं मेरी पत्नी भी आ जाये लेकिन मैं लाख उपाय करूं कि वह सुनती नहीं है। मैं उससे कहता हूं : तू भूल कर मत करना उपाय, ऐसा कभी हुआ ही नहीं। तू न ला सकेगा क्योंकि जिसके
प्रेम किया उसके साथ सम- भाव स्वीकार कर लिया। अब वह तुझे गुरु नहीं मान सकती।
ऐसे ही पत्नी भी आ जाती है कभी मेरे पास और संन्यस्त हो जाती है, दीक्षित हो जाती है-चाहती है पति को भी ले आये। वह चाह भी स्वाभाविक है-जो हमें मिला, वह उनको भी मिल जाये जिन्हें हम प्रेम करते हैं। लेकिन यह हो नहीं हो पाता। पति और अकड़ने लगता है। पत्नी को गुरु माने, यह जरा कठिन है।
इसलिए पति और पत्नी एक-दूसरे को कभी भी राजी नहीं कर पाते, बहुत मुश्किल मामला है। जितना राजी करने की कोशिश करेंगे उतनी दूरी बढ़ती जाती है; उतनी नाराजगी बढ़ती जाती है, राजी कोई नहीं होता। तो मैं उनसे कहता हूं इस झंझट में पड़ना ही मत। जिसको एक बार स्वीकार कर लिया अपने समान, जिसको प्रेम दिया, अब उसके तुम गुरु बनना चाहो और यह गुरु बनना है। तुम मार्ग दिखाते हो। तुम कहते हो, चलो, कहीं मुझे मिला वहां तुम भी चलो। वह यह मान ही नहीं सकती कि तुम उससे आगे हो सकते हो।
लेकिन एक ऐसी घड़ी आती है, जब गुरु शिष्य से कहता है, 'हे प्रिय', जब गुरु का प्यार शिष्य पर बरसता है। वात्सल्य के दिन गये, प्रेम के दिन आ गये। अब गुरु अनुभव कर रहा है कि शिष्य उसी अवस्था में आया जाता है जिसके लिए चेष्टा चलती थी, गुरु की ही अवस्था को उपलब्ध हुआ जाता है। गुरु तभी तृप्त होता है जब शिष्य भी गुरु हो जाता है।
'हे प्रिय! श्रद्धा कर, श्रद्धा कर!'
श्रद्धा का अर्थ समझ लेना। श्रद्धा का अर्थ विश्वास नहीं है, बिलीफ नहीं है। क्योंकि जिस श्रद्धा का अर्थ विश्वास होता है वह तो श्रद्धा ही नहीं है। विश्वास का अर्थ होता है : किसी धारणा में, किसी सिद्धात में, किसी शास्त्र में भरोसा। श्रद्धा का अर्थ होता है स्वभाव में, सत्य में, सिद्धात में नहीं, जीवन में, अस्तित्व में। और यह घड़ी है जब जनक जागने के करीब हो रहे हैं, अगर जरा भी संदेह पैदा हो जाये तो नींद फिर लग जायेगी। अगर जरा भी डर पकड़ जाये कि यह क्या हो रहा है, मैं तो सदा सोया रहा, सब ठीक चल रहा था, अब यह जागना और एक नया काम शुरू हो रहा है और पता नहीं जागने से सुख मिलेगा कि नहीं मिलेगा; जागना उचित है या नहीं; यह जो घट रहा है, यह इतना बड़ा है, इसके साथ जाऊं या लौट पडूं वह अपना पुराना, पहचाना, परिचित लोक ठीक था, यह तो अनजान अपरिचित रास्ता आ गया, कोई नक्शा हाथ नहीं....!
श्रद्धा का अर्थ होता है. जब अशांत तुम्हारे द्वार खटखटाये तो साथ चल पड़ना। विश्वास तो अज्ञात होता ही नहीं, विश्वास तो ज्ञात है। तुम हिंदू हो –यह विश्वास है। तुम मुसलमान हो-यह विश्वास है। तुम धार्मिक बनोगे तो श्रद्धा।
विश्वास का अर्थ है. कुरान में विश्वास है, इसलिए तुम मुसलमान हो। महावीर में विश्वास है इसलिए जैन हो। अभी जीवन में विश्वास नहीं आया, क्योंकि जीवन का विश्वास तो न महावीर