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मैं तो उस महा चमत्कार की बात कर रहा हूं। अंगारों पर चलना तो बच्चों का खेल है। वह तो सीखा जा सकता है, किया जा सकता है। और शायद कभी आदमी पानी पर चलने का भी उपाय कर ले, उसका भी आयोजन हो सकता है। लेकिन इन सब की मैं बात नहीं कर रहा हूं।
झेन फकीर बोकोजू अपने शिष्यों के साथ एक नदी के किनारे पहुंचा। शिष्य बहुत दिन से प्रतीक्षा करते थे कभी कि बोकोजू के साथ नदी पार करने का मौका मिल जाए। क्योंकि बोकोजू सदा कहता था कि मैं अगर नदी से गुजरूं तौ मेरे पैर में पानी न छुएगा। तो शिष्य बड़े उत्सुक थे यह चमत्कार देखने को। लेकिन जब बोकोजू पानी में चला तो जैसे उनके पैर भीग रहे थे, उसके पैर भी भीग रहे थे। वे तो बड़े हैरान हुए। उन्होंने कहा 'गुरुदेव, यह क्या मामला है? आप तो सदा कहते थे कि मैं पानी में चलूं तो मेरे पैर न भीगेंगे। और बोकोजू हंसने लगा। उसने कहा तो फिर तुम समझे नहीं। मैं तो अभी भी नहीं भीग रहा -हूं और जो भीग रहा है, वह मैं नहीं हूं। यह देह मैं नहीं हूं यही तो मैं तुम्हें सुबह से सांझ समझाता हूं। तुम मूर्खचित्त कब चेतोगे? मैं तो अभी भी अनभीगा हूं और मेरे भीगने का कोई उपाय नहीं है। और तुम भी अनभीगे हो, सिर्फ तुम्हें इसका पता नहीं चल रहा है, मुझे पता चल रहा है- भेद इतना ही है।
जिसे भीतर की शून्यता की प्रतीति होने लगी, तूफान आएं, निश्चित ही शरीर तो कपेगा, कंपन होंगे, लेकिन भीतर उस शून्य में कुछ भी न होगा। जो मिट गया, उसे कुछ हो कैसे सकता है! इसलिए तो ज्ञानी को हम कहते हैं-जों जीते-जी मर गया; जो मरा हुआ जी रहा है जिसके भीतर अब कुछ बचा नहीं।
अष्टावक्र का सूत्र देखा : 'बोलने वाले, वाचाल, मौन हो जाते हैं। बड़े कर्मठ आलसी जैसे हो जाते हैं। उसी में तुम जोड़ दे सकते हों-जीवित मृत जैसे हो जाते हैं, जडू-सम! मृत जैसे हो जाते
सब चलता रहता है। भेद इतना ही पड़ जाता है कि बाहर अब नाटक होता है, अभिनय होता है। भीतर तुम जानते हो कि बाहर जो हो रहा है, अभिनय है, तुम इसके कर्ता नहीं हो। एक 'पार्ट है जो पूरा कर देना है।
मेरे पास अभिनेता आते हैं, मुझसे पूछते हैं कि हमें बताएं कि हमारी अभिनय की कला कैसे कुशल हो जाए? तो उनसे मैं कहता हूं : मेरे पास एक सूत्र है। अभिनय की कला करते हो, अभिनेता हो, तो अभिनय ऐसे करना कि भूल जाना कि यह अभिनय है, कर्ता हो जाना, तो सच्चा हो जाएगा अभिनय और तब उसमें प्राण पड़ जाएंगे। और यही मैं कहता हूं सभी से कि जीवन में इस तरह चलना कि जैसे अभिनय है। शिथिल हो जाएंगे हाथ, संबंध ढीले हो जाएंगे। अगर अभिनय को सच्चा करके दिखलाना हो, तो कर्ता बन जाना और अगर सच्चाई को माया सिद्ध कर देना हो, तो अकर्ता बन जाना, अभिनय मान लेना।
तुम जरा कोई काम करके तो देखो-अभिनेता की तरह। तुम बड़े हैरान होओगे, अपूर्व रस झरेगा, बड़ी भीनी-भीनी गंध उठेगी। आज घर जाओ लौट कर तो तय कर लेना कि तीन घंटे अभिनेता की तरह करेंगे। पत्नी को गले लगाएंगे, मगर ऐसे जैसे अभिनेता लगाता है। भोजन करेंगे जैसे अभिनेता