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करुण-काव्य लिखते समय कवि पीछे रोता है,
भगवान पहले रोते हैं। अगर मुझे तुम्हें रुलाना हो तो मुझे तुमसे पहले रोना होगा। और मुझे अगर तुम्हें हंसाना हो तो मेरे प्राणों में हंसी चाहिए, अन्यथा मैं तुम्हें हंसा भी न सकूँगा। लेकिन तुम्हारे और मेरे ढंग अलग होंगे, यह सच है। कभी मैं ठीक तुम्हारे जैसा था। और कभी तुम ठीक मेरे जैसे भी हो जाओगे, ऐसी आशा है। इस आशा के साथ तुम्हें इस शिविर से विदा करता हूं।
हरि ओम तत्सत्।