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बहुत बार शुभ करके देख लिया, अशुभ भी करके देख लिया, सब क्षणभंगुर है, पानी पर खींची गई लकीरें हैं, बन भी नहीं पाती और मिट जाती हैं। इसलिए अब न शुभ में कोई आकांक्षा है न अशुभ में कोई रस है। न राय में कोई रस है न विराग में। न अब चाहता हूं कि दुख न हो न अब चाहता हूं कि सुख हो। अब दोनों से छुटकारा है। दोनों से मुक्त हुआ ओं
यथासुखं आसे......। अब सुख में हूं। यह महासुख की अवस्था ही मोक्ष की, निर्वाण की अवस्था है।
कोई धड़कन है न आंसू न उमंग
वक्त के साथ ये तूफान गए। गया समय, बीत गया समय! बचपन गया, जवानी गई, बुढ़ापा गया। शरीर की तरंगें गईं, मन की तरंगें गईं। अब न कोई तूफान उठते हैं, न कोई उमंग।
कोई धड़कन है न आंसू न उमंग
वक्त के साथ ये तूफान गए। सब जा चुका! और जब सब चला जाता है-सब आधी-तूफान-तब जो शेष रह जाता है वही तुम हो। तत्वमसि श्वेतकेतु! वही तुम हो! वही तुम्हारा ब्रह्मस्वरूप है। हे ब्रह्मन्? वही तुम हो!
हरि ओम तत्सत्!