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कह रही है वह नदी से ले हजारों घने धुंधले निर्झरों को बहा कर धारें प्रखर तोड़ शैलों के शिखर उठ, अरी उठ! कई जन्मों के लिए तू आज भर जा
मेघ गरजा। बुद्ध ने तो समाधि की अवस्था को 'धर्म-मेघ' समाधि कहा है, कि जब कोई समाधि को उपलब्ध होता है, तो मेघ बन जाता है। धर्म मेघ समाधि! धर्म का जल उससे झरने लगता है, जैसे मेघ से वर्षा गिरती है।
अरी उठ! कई जन्मों के लिए तू आज भर जा
मेघ गरजा। यह समय तुम छोडो मत। यह पुकार उठी है, इसे दबाओ मत। यह संन्यास का आकर्षण पैदा हुआ है, चूको मत।
क्योंकि शुभ करना हो तो देर मत करना। और अशुभ करना हो तो जल्दी मत करना। क्रोध आए, तो कहना कल कर लेंगे। प्रेम आए, तो अभी कर लेना, कल का क्या भरोसा है! श्मनी करनी हो, कल-परसों टालते जाना, टालते जाना। लेकिन दोस्ती बनानी हो, तो क्षण भर नहीं टालना। अभी यहीं। अभी, तो ही होगी दोस्ती। अगर सोचा फिर कभी, तो कभी नहीं।
मैं भी तुमसे मिलने को आतुर हूं। मेघ जब बरसता है पृथ्वी पर तो ऐसा मत सोचना कि पृथ्वी ही प्यासी है-मेघ भी आतुर है। पृथ्वी ही प्रसन्न नहीं होती जब जल की बूंदें उसके सूखे कंठ को गीला कर जाती हैं, मेघ भी आनंदित होता है।
कोन मिलनातुर नहीं है! आ क्षितिज फैली हुई मिट्टी निरंतर पूछती है कब मिटेगा, कब कटेगा बोल तेरी चेतना का शाप?
और तू हो लीन मुझमें फिर बनेगा शांत। कोन मिलनातुर नहीं है!