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कितने जैन मुनि मारे गये, जलाये गये, कितने मंदिर मिटाये गये इसका कोई हिसाब नहीं। हिसाब रखने की सुविधा भी नहीं। बात भी उठानी ठीक नहीं; उपद्रव तत्क्षण खड़ा हो जाये।
आदमी ने धर्म के नाम पर जितने पाप किए, किसी और चीज के नाम पर नहीं किए। राजनीति भी पिछड़ जाती है उस मामले में। जितने लोग धर्म के नाम पर मारे गये और मरे, उतने तो लोग राज्य के नाम पर भी नहीं मारे गये और मरे। अगर पाप का ही हिसाब रखना हो तो एक बात तय है कि धर्म से बड़े पाप हुए दुनिया में, और किसी चीज से नहीं हुए। और जिनको तुम साधु-महात्मा कहते हो, वे ही जड़ में हैं सारे उपद्रव की; वे ही तुम्हें भड़काते हैं, वे ही तुम्हें लड़ाते हैं। लेकिन नारे सुंदर देते हैं। नारे ऐसे देते हैं कि जंचते हैं।
अब अगर सिक्ख गुरु कह दे कि गुरुदवारा खतरे में है, तो मरने-मारने की बात हो ही गई: जैसे कि आदमी गुरुदवारा को बचाने के लिए था! अगर मुसलमान चिल्ला दें कि इस्लाम खतरे में है तो मुसलमान पागल हो जाते हैं इस्लाम को बचाना है! यह बड़े मजे की बात है। इस्लाम को तुम्हें बचाना है कि इस्लाम तुम्हें बचाता था? कि कोई गया और उसने किसी के गणेश जी तोड़ दिए, अब वह वैसे ही बैठे थे टूटने को तैयार, इतना भारी सिर, कोई धक्का ही दे दिया होगा, वे चारों खाने चित्त हो गये! खतरा हो गया। हिंदू धर्म खतरे में हो गया! अब यह जो मिट्टी के गणेश जी गिर गये या पत्थर के गणेश जी गिर गये, इनके कारण न मालूम कितने जीवित गणेशों की हत्या होगी। और मजा यह है कि इन गणेश की तमने पूजा की थी कि ये हमारी रक्षा करेंगे, अब इनकी रक्षा तम्हें करनी पड़ रही है! यह तो खूब अजीब मजा हुआ। यह तो खूब विरोधाभास हुआ।
तुम्हें परमात्मा की रक्षा करनी पड़ती है? तुम्हें धर्म की रक्षा करनी पड़ती है? तो यह धर्म न हुआ, यह तो तुम्हारा ही फैलाव हुआ तुम्हारे ही मन के जाल हुए। और ये तो बहाने हुए लडने लड़ाने, मारने-मराने के। फिर बड़े आश्वासन दिए जाते हैं। इस्लाम के मौलवी समझाते हैं कि अगर धर्म-युद्ध में मारे गये, जेहाद में, तो स्वर्ग निश्चित है। खूब प्रलोभन दिए जाते हैं कि जो धर्म-युद्ध में मरा वह तो प्रभु का प्यारा हो गया। कोई लौट कर तो कहता नहीं। लौट कर कुछ पता चलता नहीं। लेकिन मारने-मरने से कोई कैसे प्रभु का प्यारा हो जायेगा? प्रभु का प्यारा तो आदमी प्रेम से होता है, किसी और कारण से नहीं। प्रभु का तो जीवन है। जो जीवन को बढ़ाता, जिसकी ऊर्जा जीवन में सौभाग्य के नये-नये दवार खोलती है, जो जीवन के लिए वरदान स्वरूप है-उससे ही प्रभु प्रसन्न हैं। जो उसके जीवन के पक्ष में है, उसी से प्रभु प्रसन्न हैं। जो जितना सृजनात्मक है उतना धार्मिक है।
भीड़ तो सदा उपद्रव करती रही। भीड़ उपद्रव किए बिना रह नहीं सकती। मनस्विद कहते हैं कि ऐसी मुर्छा है भीड़ की कि उसे कोई न कोई बहाना चाहिए ही लड़ने-मारने को। तुमने देखा! हिंदुस्तान में हिंदू-मुसलमान इकटे थे तो हिंदू-मुसलमान लड़ते थे! सोचा था कि हिंदुस्तान-पाकिस्तान बंट जायेंगे तो झगड़ा खतम हो गया। झगड़ा खतम नहीं हुआ। जब हिंदू-मुसलमान लड़ने को न रहे-लड़ने वाले तो मिट नहीं गये, आदमी तो वही के वही रहे-तो गुजराती मराठी से लड़ने लगा। तो हिंदी भाषी गैर हिंदी भाषी से लड़ने लगा। तो एक जिला कर्नाटक में हो कि महाराष्ट्र में, इस पर छरे