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भूल दुबारा मत करना। कर लेना एक दफे पूरे मन से, ताकि दुबारा करने की जरूरत ही न रह जाए। यह मेरी प्रतीति है कि तुम अगर एक बार क्रोध पूरे मन से कर लो, समग्रता से कर लो, फिर तुम दोबारा क्रोध न कर सकोगे। वह क्रोध तुम्हें अनुभव दे जाएगा - अता का, जहर का, मृत्यु का तुम एक बार उनगर कामवासना में समग्रता से उतर जाओ, बिलकुल जंगलीपन से उतर जाओ, बिलकुल जानवर की तरह उतर जाओ, तो समाप्त हो जाएगी बात, दुबारा तुम न उतर सकोगे, विरस हो जाओगे । बार-बार उतरने की आकांक्षा होती है, क्योंकि उतर नहीं पाए, एक भी बार जान नहीं पाए। और परमात्मा कुछ ऐसा है कि जब तक तुम अनुभव से न सीखो, पीछा नहीं छोड़ता, धक्के देगा, कहेगा जाओ, अनुभव लेकर आओ।
यह ऐसे ही है जैसे कि जब तक बच्चा उत्तीर्ण होने का सर्टिफिकेट लेकर घर न आ जाए, बाप कहता है : फिर जा, फिर उसी क्लास में भर्ती हो जा, फिर वही पढ़! उत्तीर्ण होकर आना तो ही घर आना, अन्यथा आना ही मत ।
परमात्मा, जब तुम जीवन से उत्तीर्ण होते हो, तभी तुम्हें जीवन के पार ले जाता है। आवागमन मुक्ति तभी होती है जब जीवन से जो मिल सकता था तुमने ले लिया। बिना लिये तुम चाहो, बिना अनुभव किये तुम चाहो कि पार हो जाओ, तुम हो न सकोगे।
'यह तत्वबोध वाचाल, बुद्धिमान और महाउद्योगी पुरुष को गुंगा जड़ और आलसी कर जाता है। इसलिए भोग की अभिलाषा रखने वालों के द्वारा तत्वबोध त्यक्त है।' यह वचन बहुत अनूठा है। इसे समझो। अष्टावक्र कहते हैं कि यह तत्वबोध, यह संसार के रस से मुक्त हो जाना, यह मोक्ष का स्वाद मिल जाना, यह स्वच्छंदता, यह विज्ञान वाचाल को मौन कर देता है; बुद्धिमान को ऐसा बना देता है कि जैसे लोग समझें कि जड़ हो गया, महाउद्योगी को ऐसा कर जाता है जैसे आलसी हो गया। इसीलिए भोग की लालसा रखने वालों के द्वारा ऐसे तत्वबोध से बचने के उपाय किए जाते हैं। वे हजार उपाय करते हैं। वे हजार कोस दूर भागते रहते हैं। वे बुद्धों के पास नहीं फटकते। वे तो बुद्धों की छाया भी अपने ऊपर पड़ने नहीं देना चाहते, क्योंकि खतरा है। इसे समझो, यह सूत्र कठिन है। तुम्हारी जो बुद्धिमानी है, वह सांसारिक है; वस्तुतः बुद्धिमानी नहीं है। क्योंकि जिस बुद्धि से मोक्ष न मिले, जिस बुद्धि से स्वतंत्रता न फलित हो और जिस बुद्धि से सच्चिदानंद का अनुभव न हो, उसे क्या खाक बुद्धि कहना! फिर मूढ़ता किसको कहोगे ? जिसे तुम बुद्धिमानी कहते हो, जिसे तुम चालाकी कहते हो, आखिरी अर्थों में वही मूढ़ता है। इसलिए जो आखिरी अर्थों में बुद्धिमानी है, तुम्हें मूढ़ता जैसी मालूम होगी।
देखते हो मूढ़ को हम बुद्ध कहते हैं, वह शब्द बुद्ध से बना है। बुद्ध को लोगों ने बुद्ध कहा गये काम से, किसी मतलब के न रहे। घर था, महल था, पत्नी-बच्चे थे, सब था - और यह बुद्ध देखो, भाग खड़ा हुआ लाओत्सु ने कहा है कि और सब तो बड़े बुद्धिमान हैं, बिलकुल बुद्ध हूं | लाओत्सु ने कहा है और सब तो कितने सक्रिय हैं, हैं त्वरा से, एक मैं आलसी हूं ।
मेरी हालत बड़ी गड़बड़ है, मैं भागे जा रहे हैं, दौड़े जा रहे