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भागते हुए आये, दोनों की नजर एक साथ हीरे पर पड़ी। दोनों ने तलवारें निकाल लीं। दोनों दावेदार थे कि मैंने पहले देखा । देखा तो भर्तृहरि ने था। मगर उन्होंने तो कोई दावा किया नहीं, वे गैरदावेदार रहे।
अगर इन दो सिपाहियों को पता चल जाता कि तीसरा आदमी वृक्ष के नीचे बैठा है और घंटे भर से इसको देख रहा है तो वे क्या कहते ? वे कहते. 'हद आलस्य! अरे उठा नहीं लिया ! इतना बहु मूल्य हीरा ! तुम्हारी बुद्धि में तमस भरा है? तुम्हारी बुद्धि खो गई है? जड़ हो गये हो? उठते नहीं बनता, लकवा लग गया है? मामला क्या है? होश है कि नहीं, कि शराब पीये बैठे हो?'
लेकिन उन्हें तो फुरसत भी नहीं थी देखने की। वह तो झगड़ा बढ़ गया, तलवारें खिंच गईं, तलवारें चल गईं, हीरा वहीं का वहीं पड़ा रहा। थोड़ी देर बाद दो लाशें वहा पडी थीं। दोनों ने एक दूसरे की छाती में तलवार भोंक दी। हीरा जहां का तहा, दो आदमी मर मिटे । भर्तृहरि ने आंखें बंद कर लीं। अब भर्तृहरि जैसे आदमियों के पास जाने से तुम डरोगे अगर महत्वाकाक्षा अभी बची है। तो तुम हजार-हजार उपाय खोजोगे ।
'यह तत्वबोध बोलने वाले को चुप कर जाता है; बुद्धिमान को जड़ बना देता है; महाउद्योगी को आलसी जैसा कर देता है।'
वाग्मिप्राज्ञमहोद्योग जनं मूकजडालसम् ।
और जैसे कोई आलसी जैसा हो गया, जड़ जैसा हो गया, मूक हो गया, गंगा हो गया, ऐसी हालत हो जाती है। इसलिए भोग की अभिलाषा रखने वाले तत्व बोध से हजार कोस दूर भागते हैं। बुद्ध उनके गांव आ जाएं तो वे दूसरे गांव चले जाते हैं। बुद्ध उनके पड़ोस में ठहर जाएं तो भी वे पीठ कर लेते हैं। बुद्ध के वचन उनके कान में पड़े तो वे कान बंद कर लेते हैं। कान बंद करने की हजारों तरकीबें हैं। वे हजार तर्क खोज लेते हैं कि ठीक नहीं ये बातें, पड़ना मत इस झंझट में सुनना मत ऐसी बातें। उनका कहना भी ठीक है। क्योंकि जिस दिशा में वे जा रहे हैं, ये बातें उस दिशा से बिलकुल ही विपरीत हैं।
'तू शरीर नहीं है, न तेरा शरीर है और तू भोक्ता और कर्ता भी नहीं है। तू तो चैतन्यरूप है, नित्य साक्षी है, निरपेक्ष है, तू सुखपूर्वक विचर'
मधु मिट्टी के भीड में है, अथवा स्वर्णपात्र में !
दृष्टि का यह द्वैत नहीं छल पायेगा रसना के ब्रह्म को !
द्वैत छल पाता है केवल बुद्धि को, अनुभव को नहीं ।
मधु मिट्टी के भांड में है, अथवा स्वर्णपात्र में! दृष्टि का यह
द्वैत नहीं छल पायेगा रसना के ब्रह्म को !
अगर तुमने चखा तो तुम पात्रों का थोड़े ही हिसाब रखोगे कि सोने के पात्र में था कि मिट्टी के पात्र में था। चखा तो तुम स्वाद का हिसाब रखोगे। तुम कहोगे : मधु मधु है या नहीं।
संसार में जो भागा जा रहा है वह सिर्फ पात्रों की फिक्र कर रहा है, सुंदर देह देख कर दीवाना