________________
: 'हद हो गई! किसी तरह पत्नी से छूटे, यह कोआ मिल गया। पत्नी का तो कुछ बिगाड़ा भी हो कभी, इस कोए का क्या बिगाड़ा है!' कोए को पता नहीं कि ध्यानी नीचे बैठा है। कोए को कुछ लेना-देना नहीं है।
तुम्हारा ध्यान अगर इस भांति का है कि हर चीज बंद हो जानी चाहिए तब तुम्हारा ध्यान होगा, तो होगा ही नहीं, असंभव है। जगत में बड़ी गति चलती है। जगत गति है। इसलिए तो जगत कहते हैं। जगत यानी जो गतः जा रहा है; भागा जा रहा है। जिसमें गति है, वही जगत। गतिमान को जगत कहते हैं।
संस्कृत के शब्द बड़े अनूठे हैं। वे सिर्फ शब्द नहीं हैं, उनके भीतर बड़े अर्थ हैं। जो भागा जाता है, वही जगत है।
तो इस जगत में तो सब तरफ गति हो रही है - नदिया भाग रही हैं, पहाड़ बिखर रहे, वर्षा होगी, बादल घुमडेंगे, बिजली चमकेगी - सब कुछ होता रहेगा। इससे तुम भागोगे कहा? तो तुमने ध्यान की गलत धारणा पकड़ ली। ध्यान का अर्थ यह नहीं है कि बर्तन न गिरे। ध्यान का अर्थ है कि बर्तन तो गिरे, लेकिन तुम भीतर इतने शून्य रहो कि बर्तन गिरने की आवाज गंजे और निकल जाए। कभी किसी शून्य - घर में जा कर तुमने जोर से आवाज की ? क्या होता है? सूने घर में आवाज थोड़ी देर गूंजती है और चली जाती है; सूना घर फिर सूना हो जाता है, कुछ विचलित नहीं होता।
तो ध्यान को तुम स्वीकार बनाओ। तुम्हारा ध्यान अस्वीकार है, तो हर जगह अड़चन आएगी। अक्सर ऐसा होता है कि घर में एकाध आदमी ध्यानी हो जाए तो घर भर की मौत हो जाती है। क्योंकि वे पिताजी ध्यान कर रहे हैं तो बच्चे खेल नहीं सकते, शोरगुल नहीं मचा सकते। पिताजी ध्यान कर रहे हैं, जैसे पिताजी का ध्यान करना सारी दुनिया की मुसीबत है! और अगर जरा-सी अड़चन हो जा तो पिताजी बाहर निकल आते हैं अपने मंदिर के और शोरगुल मचाने लगते हैं कि ध्यान में बाधा पड़ गई।
जिस ध्यान में बाधा पड़ जाए, वह ध्यान नहीं। वह तो अहंकार का ही खेल है, क्योंकि अहंकार में बाधा पड़ती है। तुम वहां अकड़ कर बैठे थे ध्यानी बने, तुम अहंकार का मजा ले रहे थे। जरा-सी बाधा कि तुम आ गए।
तुमने देखा ! तुम्हारी ही बात नहीं है, तुम्हारे बड़े-बड़े ऋषि-मुनि जरा-सी बात में नाराज हो जाते हैं, दुर्वासा बन जाते हैं, क्रोध से उत्तप्त हो जाते हैं। यह कोई ध्यान नहीं है। ध्यान का तो अर्थ इतना ही है कि अब जो भी होगा वह मुझे स्वीकार है। मैं नहीं है; जो रहा है, हो रहा है; जो हो रहा है, होता रहेगा। तुम खाली बैठे। बर्तन टूटा, आवाज आई, गंजी, तुमने सुनी, जरूर सुनी; लेकिन तुमने इससे कुछ विरोध न किया कि ऐसा नहीं होना चाहिए था। तुमने जैसे ही कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए था कि विध्न हुआ, बाधा पड़ी। बर्तन के टूटने से बाधा नहीं पड़ रही - तुम्हारी दृष्टि विरोध की कि ऐसा नहीं होना था......। बच्चा रोया, तुम्हें बाधा पड़ी - यह नहीं होना था । कोई बच्चे को रोके, कोई नहीं रोक रहा है-और बाधा पड़ी! तुम ध्यान कर रहे हो और किसी को तुम्हारे ध्यान की फिक्र नहीं