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तत्वमेव न संदेहश्चिन्यूर्ते विज्वरो भव
और ऐसा जान कर - तू वही चिन्मय है, जिसका सारा खेल है; तू वही मूल है, जिसकी सारी अभिव्यक्ति है- विगतज्वर हो, सारा संताप छोड़, सुखी हो !
जब तक मन है, तब तक अड़चन है।
रात ने चुप्पी साध ली है। सपने शांति में समा गए हैं।
अंतः कपाट आपसे आप खुलने लगा है
देवता शायद दरवाजे पर आ गये हैं
पानी का अचल होना
मन की शांति और आभा का प्रतीक है।
पानी जब अचल होता है
उसमें आदमी का मुख दिखलाई पड़ता है।
हिलते पानी का बिंब भी हिलता है।
मन जब अचल पानी के समान शांत होता है
उसमें रहस्यों का रहस्य मिलता है।
मन रे, अचल सरोवर के समान शांत हो जा जग कर तूने जो भी खेल खेले
सब गलत हो गया
अब सब कुछ भूल कर नींद में सो जा ।
मन जब सो जाए तो चेतना जागे । मन जागा रहे तो चेतना सोई रहती है। मन के जागरण को अपना जागरण मत समझ लेना । मन का जागरण ही तुम्हारी नींद है। मन सो जाए, सारी तरंगें खो जाएं मन की, तो मन के सो जाने पर ही तुम्हारा जागरण है। सारी बात मन की है। मन है तो संसार; मन नहीं तो मोक्ष। तुम अपने को किसी भांति मन से मुक्त जान लो ।
एतावदेव विज्ञानम् !
इतना ही विज्ञान है।
यथेच्छसि तथा कुरु ।
ऐसा जान कर सुखपूर्वक विचर, जो करना हो कर। स्वच्छंद हो!
हरि ओम तत्सत्!