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सम्हाल लें, क्योंकि अभी संसार से मन तो छूटा नहीं; और सोचते हैं, परमात्मा को भी थोड़ा सम्हाल लें। भय भी पकड़ा हुआ है। बचपन से डरवाए गए हैं। लोभ दिया गया है। स्वर्ग का लोभ है नर्क का भय है, वह भी पकड़े है, ऐसे डांवांडोल हैं।
यह डावांडोलपन छोड़ो। अगर संसार से मुक्त होना है तो संसार के अंधकार में उतर जाओ पूरे। होशपूर्वक संसार का ठीक से अनुभव कर लो। वही होश तुम्हें बता जाएगा आत्यंतिक रूप से बता जाएगा कि संसार सपना है। उसके बाद तुममें सत्वबुद्धि पैदा होती है। संसार सपना है, ऐसी प्रतीति ही सत्वबुद्धि की प्रतीति है। फिर तुम सत्य को जानने को तैयार हुए। जब संसार सपना सिद्ध हो गया अपने अनुभव से, फिर किसी सदगुरु का छोटा-सा वचन भी तुम्हें चौंका जाएगा, कृतार्थ कर जाएगा। नहीं तो अंत- क्षण तक आदमी, वह जो अटका रह गया है, उसी में उलझा रहता है।
सबल जब दिवसात काले वेणु वन से घर मुझे लौटालना हो। तब गले में डाल कर प्रश्वास पाश कठोर
मुझको खींचना मत। देखा, गाय को ग्वाला जब सांझ को लौटाने लगता है जंगल से तो वह आना नहीं चाहती। हरा घास अभी भी बहुत हरा है। जंगल अभी भी पुकारता है।
सबल जब दिवसात काले वेणु वन से घर मुझे लौटालना हो तब गले में डाल कर प्रश्वास पाश कठोर मुझको खींचना मत। मुक्त धरती और मुक्त आकाश में अभिमत विचरने स्वेच्छया बहने पवन में, श्वास लेने स्वर्णिमा तप में नहाने नील-नील तरंगिणी में पैठने, तृष्णा बुझाने
और तरु के सघन शीतल छाहरे में अर्धमीलित नेत्र बैठे स्वप्न रचने के सुखों से फेरना मुंह कठिन होगा।
सुखद लगता दुख संकट कष्ट भी गत। अगर मन अधूरा है, अभी भरा नहीं, अगर कहीं कोई फीस अटकी रह गई है, सपने में अभी भी थोड़ा रस है, लगता है शायद कहीं सच ही हो, असार अभी पूरा का पूरा प्रगट नहीं हुआ। लगता है कहीं कोई सार शायद छिपा ही हो! इतने लोग दौड़े जा रहे हैं-धन के, पद के पीछे! हम लौटने लगे! शक होता है। इतने लोग दौड़ते हैं, कहीं ठीक ही हों!