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या नहीं? आदमी ईमानदार थे। उन्होंने कहा : अभी तो मैं मुक्त नहीं हूं। अभी तो सब झंझटें जैसी आदमी की होती हैं वैसी मेरी हैं।
तो मैंने कहा. कम-से-कम तुम इतना तो करो कि ईसा के प्रेम ने तुम्हें मुक्त कर दिया इसके प्रमाण तो बनो। फिर जिन्हें भी रस होगा वे तुम्हारे पास बदलने को आ जाएंगे। तुम्हें गाव-गांव, घर-घर जा कर आदमी को बदलने की जरूरत नहीं। ईसाइयों की संख्या बढ़ाने से थोड़े ही कुछ होगा। लेकिन यही होता है। मुसलमान अपनी कुरान को पकड़ कर बैठा है, हिंदू अपनी गीता को पकड़ कर बैठा है। गीता, जिससे मुक्ति हो सकती थी, तुमने उसका भी करागृह बना लिया। तुमने शास्त्रों का ईंटों की तरह उपयोग किया है।
'असतबुद्धि वाला पुरुष जीवन भर जिज्ञासा करके भी उसमें मोह को ही प्राप्त होता है।'
इसलिए धार्मिक मैं उसी को कहता हूं जो संप्रदाय में नहीं है जो सारे संप्रदायों से मुक्त है और सारे सिद्धातो से भी; जो स्वच्छंद है; जिसने स्वयं के छंद को पकड़ लिया; अब जो जीता है अपने भीतर के गीत से; जो जीता है अब परमात्मा की भीतर गूंजती आवाज से बाहर जिसका अब कोई सहारा नहीं। जो बाहर से बेसहारा है उसे परमात्मा का सहारा मिल जाता है।
___ लेकिन स्वाभाविक है, असत से भरा व्यक्ति मोह में पड़ जाता है। क्योंकि असत से भरा व्यक्ति अभी वस्तुत: ज्ञान के योग्य ही न था।
एक आदमी धन के पीछे दौड़ रहा था, उसकी इच्छा थी संग्रह कर लेने की। संग्रह में एक तरह की सुरक्षा है। बीच में ही, कच्चा ही लौट आया धन की दौड़ से। यह आदमी अब ज्ञान को संग्रह करने लगेगा, संग्रह की दौड़ नहीं मिटेगी। धन से लौट आया। बीच से लौट आया। संग्रह का भाव अधूरा रह गया। उसको कहीं पूरा करेगा। अब यह ज्ञान-संग्रह करने लगेगा।
यह आदमी राजनीति में था और कहता था कि मेरी पार्टी ही एकमात्र पार्टी है जो देश को सुख ने दे सकती है। यह उसमें पूरा नहीं गया। पूरा जाता तो असार दिखाई पड़ जाता। बीच में ही लौट आया, अधकच्चा लौट आया। यह किसी धर्म में सम्मिलित हो गया है, हिंदू हो गया है, तो अब यह कहता है कि हिंदू धर्म ही एकमात्र धर्म है जो दुनिया की मुक्ति ला सकता है। यह राजनीति है, यह धर्म नहीं है। यह आदमी अधूरा लौट आया।
तुम जहां से अधूरे लौट आओगे उसकी छाया तुम पर पड़ती रहेगीऔर वह छाया तुम्हारे जीवन को विकृत करती रहेगी। इसलिए एक बात को खूब खयाल से समझ लेना कही से कच्चे मत लौटना। पाप का भी अनुभव आवश्यक है, अन्यथा पुण्य पैदा नहीं होगा। और संसार का अनुभव जरूरी है, अर्थात संसार की पीड़ा और आग से गुजरना ही पड़ता है। उसी से निखरता है कुंदन। उसी से तुम्हारा स्वर्ण साफ-सुथरा होता है। इसलिए जल्दी मत करना। और जो भी जल्दी में है, वह मुश्किल में पड़ेगा। वह न घर का रहेगा और न घाट का रहेगा, धोबी का गधा हो जाएगा-न संसार का, न परमात्मा का।
अधिक लोगों को मैं ऐसी हालत में देखता हूं-दो नावों पर सवार हैं। सोचते हैं, संसार भी थोड़ा