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आ कर चले गए वे खा कर चोट गए वे आए लौट गए क्षण बार-बार होकर उदार
कब कितने छले गए! प्रभु तो आता है प्रतिपल, तुम जागते नहीं, मिलन नहीं हो पाता। प्रभु तो आता है प्रति किरण, प्रति श्वास, प्रति धड़कन हृदय की; लेकिन तुम सोये होते, मिलन नहीं हो पाता। जैसे मैं तुम्हारे घर आऊं और तुम गहरे सोये और घर्राटे भरते हो, तो मिलन कैसे होगा? प्रभु से मिलना हो तो जैसा प्रभु जागा है ऐसा ही तुम्हें जागना होगा। जागने का जागने से मिलन होगा। जागते का सोते से मिलन नहीं होता। तुम सोये पड़े, मैं तुम्हारे पास बैठा, तुम्हारे सिर पर हाथ रखे बैठा, तो भी मिलन नहीं होता-तुम सोये, मैं जागा। दो सोये व्यक्तियों के बीच मिलन होता नहीं। एक जागे और एक सोये के बीच भी मिलन नहीं होता। दोनों जागे तो मिलन होता है।
साक्षी बनो। और तब तुम पाओगे कि जो भी तुम कर रहे, धीरे-धीरे सभी पाठ हो गया।
दूसरा प्रश्न :
मानव-जीवन में झूठ से लेकर बलात्कार और हत्या तक के अपराध फैले हैं। आदिकाल से संत महापुरुषों ने सदकर्म की प्रेरणा दी है। इस संदर्भ में कृपा कर समझाये कि आज का प्रबुद्ध वर्ग मानव-जीवन की विकार-जनित समस्याओं का समाधान कैसे करे?
पहली तो बात : भीड़ जैसी है वैसी ही रही है और वैसी ही रहेगी; इसमें तुम अपने को उलझाना मत। जीवन के जो परम सत्य हैं; वे केवल व्यक्तियों को उपलब्ध हुए हैं भीड़ को नहीं। भीड़ को हो सकते नहीं। कोई उपाय नहीं। भीड़ तो मूर्छित लोगों की है। वहां तो धर्म के नाम पर भी पाप ही चलेगा। वहां पाप ही चल सकता है। वहां तो अच्छे-अच्छे नारों के पीछे भी हत्या ही चलेगी। हिंदू मुसलमानों को काटेंगे, मुसलमान हिंदुओं को काटेंगे। ईसाई मुसलमानों को मारेंगे, मुसलमान ईसाइयों को मारेंगे। हिंदुओं ने बौद्धों को उखाड़ डाला, समाप्त कर दिया।
आज इस बात को कोई उठाता भी नहीं कि कितने बौद्ध भिक्षु हिंदुओं ने जलाये, कितने मठों में आग लगाई। इस बात को उठाने में भी झंझट-झगड़ा खड़ा हो सकता है। इस बात को कोई उठाता भी नहीं। महावीर का इतना बड़ा प्रभाव था, जैनी सिकुड़-सिकुड़ कर थोड़े-थोड़े कैसे होते चले गये?