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कर सो जाता है।
बुद्ध के पास एक व्यक्ति आया एक सुबह। उसने आ कर बुद्ध के चरणों में प्रणाम किया और कहा कि शब्द से मझे मत कहें, शब्द तो मैं बहत इकट्ठे कर लिया हैं। शास्त्र मैंने सब पढ लिये हैं। मुझे तो शून्य से कह दें, मौन से कह दें। मैं समझ लूंगा। मुझ पर भरोसा करें।
बुद्ध ने उसे गौर से देखा और आंखें बंद कर ली और चुप बैठ गए। वह अदमी भी आख बंद कर लिया और चुप बैठ गया। बुद्ध के शिष्य तो बड़े हैरान हुए कि यह क्या हो रहा है। पहले तो उसका प्रश्न ही थोड़ा अजीब था कि 'बिना शब्द के कह दें और भरोसा करें मुझ पर और मैं शास्त्र से बहुत परिचित हो गया हूं अब मुझे निःशब्द से कुछ खबर दें। सुनने योग्यसुन चुका पढ़ने योग्य पढ़ चुका; पर जो जानने योग्य है, वह दोनों के पार मालूम होता है। मुझे तो जना दें। मुझे तो जगा वें ज्ञान मांगने नहीं आया हूं। जागरण की भिक्षा मांगने आया हूं। एक तो उसका प्रश्न ही अजीब था, फिर बुद्ध का चुपचाप उसे देख कर आख बंद कर लेना, और फिर उस आदमी का भी आख बंद कर लेना, बड़ा रहस्यपूर्ण हो गया। बीच में बोलना ठीक भी न था, कोई घड़ी भर यह बात चली चुपचाप, मौन ही मौन में कुछ हस्तांतरण हुआ कुछ लेन-देन हुआ। वह आदमी बैठ बैठा मुस्कुराने लगा आख बंद किये ही किये। उसके चेहरे पर एक ज्योति आ गई। वह झुका, उसने फिर प्रणाम किया बुद्ध को, धन्यवाद दिया और कहा : 'बड़ी कृपा। जो लेने आया था, मिल गया।' और चला गया।
आनंद ने बुद्ध से पूछा कि 'यह क्या मामला है? क्या हुआ? आप दोनों के बीच क्या हुआ? हम तो सब कोरे के कोरे रह गए। हमारी पकड़ तो शब्द तक है, हमारी पहुंच भी शब्द तक है; निःशब्द में क्या घटा? हम तो बहरे के बहरे रह गए। हमें तो कुछ कहें, शब्दों में कहें।'
बुद्ध ने कहा: आनंद, तू अपनी जवानी में बड़ा प्रसिद्ध घुड़सवार था, योद्धा था। घोड़ों में तूने फर्क देखा? कुछ घोड़े होते हैं-मारो, मारो, बामुश्किल चलते हैं, मारो तो भी नहीं चलते-खच्चर जिनको हम कहते हैं। कुछ घोड़े होते हैं आनंद, मारते ही चल पड़ते हैं। और कुछ घोड़े ऐसे भी होते हैं कि मारने का मौका नहीं देते; तुम कोड़ा फटकासे, बस फटकार काफी है। कुछ घोड़े ऐसे भी होते हैं आनंद कि कोड़ा फटकासे भी मत, कोड़ा तुम्हारे हाथ में है और घोड़ा सजग हो जाता है। बात काफी हो गई। इतना इशारा काफी है। और आनंद, ऐसे भी घोड़े तूने जरूर देखे होंगे, तू बड़ा घुड़सवार था, कि कोड़ा तो दूर, कोड़े की छाया भी काफी होती है। यह ऐसा ही घोड़ा था। इसको कोड़े की छाया काफी थी।
सत्वबुद्धि का अर्थ होता है : जो शब्द के बिना भी समझने मैं तत्पर हो गया। सत्वबुद्धि का अर्थ होता है. जो सत्य को सीधा-सीधा समझने के लिए तैयार है; जो आना-कानी नहीं करता; जो इधर-उधर नहीं देखता। जो: सीधे -सीधे सत्य को देखता है वही सत्वबुद्धि है।
सत्व को देखने की प्रक्रिया आती कैसे है? आदमी सत्वबुद्धि कैसे होता है? इससे तुम उदास मत हो जाना कि अगर हम असतबुद्धि हैं तो हम क्या करेंसत्वबुद्धि होते तो समझ लेते। अब असतबुद्धि हैं तो क्या करें!
और तुम्हारे शास्त्रों की जिन्होंने व्याख्या की है, उन्होंने भी कुछ ऐसा भाव पैदा करवा दिया