________________
है तो छाया, पर बड़ी मधुर, बडी सुनहली! निंदा नहीं है इसमें है सुंदर, सुनहली, बड़ी मधुर! पर है छाया! है माया ! पानी पर खींची रेखा ! खींच भी नहीं पाते, मिट जाती है। बंद आख में देखा गया सपना! शायद सपनों में देखा गया सपना !
कभी तुमने सपने देखे जब तुम सपने में सपना देखते हो? रात सोये, सपना देखा कि अपने सोने के कमरे में खड़े हैं और सोने जा रहे हैं। लेटे बिस्तर पर लेट गये बिस्तर पर, नींद लग गई और सपना देखने लगे। सपने में सपना और भी सपना हो सकता है।
यह पूरा जीवन ही एक सपना है, फिर इस सपने में और छोटे-छोटे सपने हैं-कोई धन का देखता, कोई पद का देखता, कोई काम का देखता । फिर छोटे सपने में और छोटे-छोटे सपने हैं। बीज सपने का है, फिर उसमें शाखायें हैं, वृक्ष हैं, फल हैं, फूल हैं - वे सभी सपने हैं । और सब सुंदर हैं। क्योंकि है तो माया उसी की है तो प्रभु की ही माया । यह खेल भी किसी बड़ी गहरी सिखावन के लिए है, कोई बड़ी देशना इसमें छिपी है।
तो मैं तुमसे यह नहीं कहता कि यह गलत है, न तुमसे मैं कहता, यह सही है। मैं तुमसे इतना ही कहता हूं, यह सपना है, तुम जागो तो यह टूटे।
सदकर्म की प्रेरणा का अर्थ है. तुम सपने में बने थे चोर, कोई महात्मा आया, उसने कहा, 'देखो चोर बनना बहुत बुरा है साधु बनो।' तुम सपने में साधु बन गये। अब सपने में चोर थे कि साधु थे, क्या फर्क पड़ता है! सुबह उठ कर सब बराबर हो जायेगा। तुम पानी पर लिख रहे थे भजन कि गाली-गलौज, क्या फर्क पड़ता है! पानी पर सब खींची रेखायें मिट जाती हैं। तुम यह तो न कह सकोगे कि मेरी न मिटे, क्योंकि मैं भजन लिख रहा था! तुम यह तो न कह सकोगे कि दूसरे की मिट गई, ठीक, क्योंकि वह तो गाली लिख रहा था; मैं तो भजन लिख रहा था, राम-राम लिख रहा था, मेरी तो नहीं मिटनी चाहिए थी। लेकिन पानी पर कोई भी रेखा खींचो शुभ - अशुभ, सब बराबर है।
इस संसार में सदकर्म - असदकर्म सब बराबर हैं। यह आत्यंतिक उदघोषणा है। और यह उदघोषणा जहां मिले वहीं जानना कि तुम सतपुरुष के करीब आये।
अगर सतपुरुष यह कह रहा हो : अच्छे काम करो! अच्छे काम का मतलब - ब्लैक मार्केट मत करो, चोरी मत करो, टैक्स समय पर चुकाओ, तो यह राष्ट्र - संत है। इनका मतलब राजनीति से है। यह सरकारी एजेंट है। यह कह रहा है कि ऐसा ऐसा करो जैसा सरकार चाहती है। मैं यह नहीं कह रहा कि तुम ब्लैक मार्केट करो। मैं यह भी नहीं कह रहा कि तुम टैक्स मत भरो। मैं तुमसे यह कह रहा हूं : जो तुमसे ऐसा कहे वह राजनीतिक चालबाज है।
इसलिए तो राजनीतिज्ञ किन्हीं - किन्हीं संतो के पास जाते हैं। जिन संतो से उन्हें सहारा मिलता राजनीति में, उन्हीं के पास जाते हैं। स्वभावतः सांठ-गांठ है। जो संत कहता है देश में अनुशासन रखो, तो जो सत्ता में होता है वह उसके पास जाता है कि बिलकुल ठीक। लेकिन जो सत्ता में नहीं है वह उससे दूर हट जाता है; वह कहता है, 'यह तो हद हो गई! अगर अनुशासन रहा तो हम सत्ता में कैसे पहुंचेंगे?'