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फिर पूछा है : 'इस संदर्भ में कृपा कर समझाएं कि आज का प्रबुद्ध वर्ग मानव-जीवन की विकार-जनित समस्याओं का समाधान कैसे करे?'
प्रबुद्ध किसको कहते हो? विश्वविद्यालय से डिग्री मिल गई, इसलिए? कि दो चार लेख दो-कोड़ी के अखबारों में लिख लिए. इसलिए? प्रबद्ध किसको कहते हो? कि थोड़ी बकवास कर लेते हो तर्कयुक्त ढंग से, इसलिए? प्रबुद्ध किसको कहते हो?
'प्रबुद्ध' शब्द बहुत बड़ा शब्द है। बुद्धिजीवी को प्रबुद्ध कहते हो क्योंकि स्कूल में मास्टर है? कॉलेज में प्रोफेसर है? बुद्धिजीवी एक बात है, प्रबुद्ध बड़ी और बात है। प्रबुद्ध का अर्थ है जो जागा; जो बुद्ध हुआ जिसका भीतर का दीया जला! और जिसके भीतर का दीया जला, वह पूछेगा कि मानव-जीवन की विकार-जनित समस्याओं का समाधान कैसे करें? तो फिर प्रबुद्ध क्या खाक हुए? कोई कहे कि मेरे घर में दीया जल रहा है, अब मुझे यह बताएं कि अंधेरे को कैसे बाहर करें, तो हम उसको क्या कहेंगे? हम कहेंगे तुम किसी भांति में पड़े हो, दीया जल नहीं रहा होगा। दीया जब जलता है तो अंधेरा बाहर हो जाता है। अभी तुम पूछ रहे हो अंधेरे को कैसे बाहर करें, तो तुम्हारा दीया बुझा हुआ होगा तुमने सपना देखा होगा कि दीया जल गया, दीया जला नहीं है। दीया उधार होगा, किसी
और का ले आए हो उठा कर। तुमने अपने प्राणों से उसमें ज्योति नहीं डाली। तुम्हारी आत्मा नहीं जल रही है, प्रकाशित नहीं हो रही है।
प्रबुद्ध बनो! यही तो सारी चेष्टा है। न तो शिक्षा से कोई प्रबद्ध बनता है, न बद्धिवादी बनने से कोई प्रबुद्ध बनता है, न तर्क की क्षमता से कोई प्रबुद्ध बनता है। प्रबुद्ध तो बनता है कोई साक्षी होने से। और तब, तब तुम नहीं पूछते कि विकार-जनित जीवन की समस्याओं का कैसे समाधान करें! तब तुम्हें एक बात दिखाई पड़ जाती है कि साक्षी होने में समाधान है। तुम्हें जैसा समाधान हुआ वैसे ही दूसरों को भी समाधान होगा। तब तुम लोगों को साक्षी बनाने की चेष्टा में संलग्न होते हो। यही तो महावीर ने किया चालीस वर्षों तक, बुद्ध ने किया। क्या सिखा रहे थे लोगों को? सिखा रहे थे कि हम जाग गए, तुम भी जाग जाओ। बस जागने में समाधान है।
यही मैं कर रहा हूं। मैं तुमसे कुछ भी नहीं कहता कि तुम कैसा आचरण बनाओ। बकवास है आचरण की बात। खूब की जा चुकी, तुम बना नहीं पाये। उस करने के कारण ही तुम उदास आत्महीनता से भर गये। मैं तुमसे कहता हूं : जागो! एक बात मैंने देखी है कि जागने से सब समस्याओं का समाधान हो जाता है और बिना जागे किसी समस्या का समाधान नहीं होता। ज्यादा से ज्यादा तुम समस्याएं बदल सकते हो। एक समस्या की जगह दूसरी बना लोगे, दूसरी की जगह तीसरी बना लोगे; पर इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता, समस्या अपनी जगह खड़ी रहती है। जागने में समाधान है। लेकिन तुम दूसरों को तभी जगा सकोगे जब तुम जाग गये हो, इसके पहले नहीं। बुझी आत्मा का व्यक्ति किसी की आत्मा को जगा नहीं सकता।
अड़चन है। जिन्होंने पूछा है, उनकी आकांक्षा है लोगों की विकार-जनित समस्याओं को दूर करें। तुम अपनी कर लो। फिर तुम्हें समझ आयेगी।