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कहता है।
समझ लो । एक लाओत्सु का शिष्य मजिस्ट्रेट हो गया चीन में। पहला ही मुकदमा आया। एक आदमी ने चोरी की एक धनपति के घर में और उसने दोनों को सजा दे दी छः-छः महीने की - धनपति को भी और चोर को भी । धनपति ने कहा : 'तुम्हारा मस्तिष्क ठीक है? तुम्हें कुछ नियम-कानून पता है? मुझे किसलिए दंड दिया जा रहा है? मेरी चोरी, उल्टे मुझे दंड! यह तो हद हो गई।'
सम्राट के पास मामला गया। सम्राट भी जरा हैरान हुआ कि इस आदमी को सोच-समझ कर रखा था, बुद्धिमान आदमी है, यह क्या बात है! ऐसा कभी सुना कि जिसके घर चोरी हुई उसको भी सजा! सम्राट ने पूछा कि तुम्हारा प्रयोजन क्या है? उसने कहा : 'प्रयोजन साफ है। इस आदमी ने इतना धन इकट्ठा कर लिया है कि चोरी नहीं होगी तो क्या होगा? यह आदमी चोरों को पैदा करने का कारण है। जब तक यह आदमी सारे गांव का धन बटोरता जा रहा है, तब तक चोर को ही जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं। लोग भूखे मर रहे हैं, लोगों के पास वस्त्र नहीं हैं और यह आदमी इकट्ठा करता जा रहा है। इसके पास इतना इकट्ठा हो गया है कि अब चोरी को पाप कहना ठीक नहीं। इसके घर चोरी को पाप कहना तो बिलकुल ठीक नहीं। अपराध भी तो किसी विशेष संदर्भ में अपराध होता है। ही, किसी गरीब के घर इसने चोरी की होती तो अपराध हो जाता, इसके घर चोरी में क्या अपराध है ? और यह खुद चोर है। इतना धन इकट्ठा कैसे हुआ? इसलिए अगर मुझे आप पद पर रखते हैं तो मैं दोनों को सजा दूंगा। न यह धन इकट्ठा करता न चोरी होती।'
अब तुम्हारा महात्मा क्या कहता है? महात्मा कहता है. चोरी मत करना ! और इसलिए धनपति महात्मा के पक्ष में है सदा । धनपति कहता है : बिलकुल ठीक कह रहे हैं महात्मा जी, चोरी कभी नहीं करना! क्योंकि चोरी धनपति के खिलाफ पड़ती है। इसलिए सदियों से जिनके पास है, वे महात्मा के पक्ष में हैं; और महात्मा उनको आशीर्वाद दे रहा है जिनके पास है। और महात्मा तरकीबें खोज रहा है ऐसी-ऐसी जालभरी, चालाकी - भरी कि जिससे जिसके पास है : 'तुम गरीब हो, क्योंकि तुमने पिछले जन्म में पाप किए। पिछले जन्म में पुण्य किए हैं।'
अब एक बड़ी मजे की बात है ! वह आदमी अभी चूस रहा है, इसलिए अमीर है; यह आदमी चूसा जा रहा है, इसलिए गरीब है। लेकिन तरकीब यह बताई जा रही है कि पिछले जन्म में तुमने पाप किए हैं, इसलिए तुम गरीब हो। और पिछले जन्मों का किसी को कोई पता नहीं। पिछला जन्म तो सिर्फ कहानी है - हो न हो ! पिछले जन्म के आधार पर यह जो चालबाजी चली जा रही है, तो फिर मार्क्स ठीक मालूम पड़ता है कि धर्म को लोगों ने अफीम का नशा बना रखा है; गरीबों को पिलाये जाते हैं अफीम, उनको समझाये चले जाते हैं कि तुम अपने कर्मों का फल भोग रहे हो।
फिर अड़चनें भी आती हैं यहां। यहां हम देखते हैं रोज, जो बेईमान है, चार सौ बीस है, वह धन कमा रहा है, पाप का फल तो नहीं भोग रहा है। जो ईमानदार है, वह भूखा मर रहा है। तो भी महात्मा समझाये जाता कि ठहरो, उसके घर देर है, अंधेर नहीं। अब यह देर किसने खोज ली?
उसकी सुरक्षा होती है। वह कहता वह आदमी अमीर है, क्योंकि उसने