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जिनको तुम संत महापुरुष कहते हो, आमतौर से तो तुम्हारी धारणाओं के अनुकूल चलने वाले लोग होते हैं। जैसे जैन है, वह किसी को संत कहता है, उसकी अपनी परिभाषा है संत की। रात भोजन नहीं करता, पानी छान कर पीता है, एक ही बार भोजन करता है-उसकी अपनी परिभाषा है। यही परिभाषा हिंदुओं की नहीं है, तो हिंदू को कोई अड़चन नहीं है। दिगंबर जैन की परिभाषा है कि संत नग्न रहता है। अब वह दिगंबर जैन की परिभाषा है। तो जो नग्न न हो तब तक संत नहीं है; जैसे ही नग्न हुआ कि वह संत हुआ। चाहे वह पागलपन में ही नग्न क्यों न हो गया हो लेकिन वह संत हो गया। इसीलिए तो जैन बुद्ध को भगवान नहीं कहते, महात्मा कहते हैं, भगवान तो महावीर को कहते हैं, बुद्ध को महात्मा क्वते हैं. 'ठीक हैं, कामचलाऊ, कुनकुने, कोई अभी पूरी अवस्था उपलब्ध नहीं हुई। पूरी अवस्था में तो दिगंबरत्व है। महावीर नग्न खड़े हो जाते हैं।
जैन कृष्ण को तो महात्मा भी नहीं कह सकते। उनको तो नरक में डाला हुआ है सातवें नरक में! क्योंकि कृष्ण ने युद्ध करवा दिया। महाभारत की सारी हिंसा कृष्ण के ऊपर है। अर्जुन तो बेचारा भाग रहा था। वह तो जैनी होना चाहता था। वह तो कह रहा था. 'जाने दो महाराज, यह हिंसा मुझे नहीं सोहती। मैं जंगल चला जाऊंगा, झाडू के नीचे बैठ कर ध्यान करूंगा।' वह –तो तैयार ही था, भाग-भागा था। क्या उसको खींच-खींच कर जबर्दस्ती समझा-बुझा कर उलझा दिए-गरीब आदमी को! तो हिंसा-हत्या, इसका जम्मा किस पर है? यह जो महाभारत में इतना खून हुआ इसका जम्मा किस पर है? निश्चित ही अर्जुन पर तो नहीं है। कृष्ण पर ही हो सकता है। कोई भी अदालत अगर निर्णय देगी तो कृष्ण पर ही जुम्मा जायेगा। अर्जुन ज्यादा से ज्यादा सहयोगी था, लेकिन प्रधान केंद्र तो कृष्ण ही हैं सारे उपद्रव के। तो जैनों ने उनको सातवें नर्क में डाला है।
अब जैनों की संख्या ज्यादा नहीं, इसलिए हिंदुओं से डरते भी हैं, इसलिए गुंजाइश भी रखी है कि अगले कल्प में, फिर जब सृष्टि का निर्माण होगा, तब तक तो कृष्ण को नर्क में रहना पड़ेगा;
वे आदमी कीमत के हैं, यह बात भी सच है, तो अगली सृष्टि में वे पहले तीर्थकर होंगे। ऐसे हिंदुओं को भी खुश कर लिया है। अगली सृष्टि में, कभी अगर होगी, तो वे पहले तीर्थंकर होंगे, लेकिन तब तक नर्क में पड़े सडेंगे।।
कोन संत है, कोन महात्मा है? बड़ा मुश्किल है कहना। कृष्ण तक को जैन मानने को राजी नहीं कि वे संत हैं। मुहम्मद को तुम संत कहोगे? तलवार हाथ में! तुम जीसस को संत कहोगे?
___एक जैन मुनि से मेरी बात हो रही थी। उन्होंने कहा कि आप जीसस की इतनी प्रशंसा क्यों करते हैं? उनको फांसी लगी! तो मैंने कहा : निश्चित लगी। तो वे कहने लगे : फांसी तो तभी लगती है,जब पिछले जन्म में कोई बड़ा पाप किया हो, नहीं तो फांसी कैसे लगे? बात तो ठीक लगती है। काटा भी गड़ता है तो कर्म के फल से गड़ता है; फांसी लगती तो..| तो जैन हिसाब में फांसी देने वाले उतने जुम्मेवार नहीं हैं, जितना कि लगने वाला जुम्मेवार है, क्योंकि इसने कुछ महापाप किए होंगे। इसको महात्मा कैसे कहना!
जैनों का तो हिसाब यह है कि महावीर अगर चलते हैं रास्ते पर और कांटा सीधा पड़ा हो तो