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जाएं, मुझे मुझ पर छोड़ दें अकेला छोड़ दें।
इंग्लैंड से कोई यहां आए, प्रसिद्ध हो, सब छोड़कर आए, तो समझो, क्या तकलीफ है? तकलीफ यही है कि आदमी हारे तो मसीबत, जीते तो मसीबत। इधर गिरो तो कुआ, उधर गिरो तो खाई। और बीच में सम्हलना आता नहीं, क्योंकि बीच में सम्हलने के लिए बड़ी जागरूकता चाहिए। भोग में पड़ो तो झंझट, त्याग में पड़ो तो झंझट।
इधर मैं देखता हूं जो भोगी हैं वे परेशान हो रहे हैं रो रहे हैं। किसी को ज्यादा खाने का पागलपन है, तो वह परेशान हो रहा है, कि शरीर थकता जाता है, कि शरीर बढ़ता जाता है, पेट में दर्द रहता है, यह तकलीफ है, वह तकलीफ है!
तुम जरा जैन मुनि के पास जा कर देखो। उधर तकलीफ है। वह उपवास से परेशान है। बीच में तो रुकना जैसे आता ही नहीं। सम्यक भोजन तो जैसे किसी को आता ही नहीं; या तो ज्यादा खाओगे या बिलकुल न खाओगे। या तो सांस भीतर लोगे या बाहर ही रोक रखोगे। यह कोई बात हुई फिर मुसीबत पैदा होती है।
जनक का सूत्र सम्यकत्व का है, संतुलन का है।
साक्षी-पुरुष का अर्थ होता है. जीवन के इन दवंदवों के बीच खड़े हो जाना; न इधर न उधर, कोई चुनाव नहीं; न त्याग न भोग; जो आ जाए, सहज कर लेना; जो हो जाए उसे हो जाने देना; जो घटे-प्रमोद से, प्रफुल्लता से, स्वांत: सुखाय उसे कर लेना और भूल जाना।
'जो भीतर विकल्प से शून्य है और बाहर भ्रांत हुए पुरुष की भांति है ऐसे स्वच्छंदचारी की भिन्न-भिन्न दशाओं को वैसे ही दशा वाले पुरुष जानते हैं। यह सूत्र अति कठिन है। समझने की कोशिश करो।
'जो भीतर विकल्प से शून्य है....।' जिसके भीतर अब कोई विचार न रहे, कोई चुनाव न रहा-ऐसा हो वैसा हो-कोई निर्णय न रहा, जो भीतर सिर्फ शून्य मात्र है, देखता है, साक्षी है।
'और बाहर भ्रांत हुए पुरुष की भांति है....।' ऐसा व्यक्ति भी बाहर तो भ्रांत पुरुष जैसा ही लगेगा, क्योंकि उसे भी भूख लगेगी तो वह भोजन करेगा। वह भी शरीर थकेगा तो लेटेगा और सो जाएगा। बाहर से तो तुममें और उसमें क्या फर्क होगा? कोई फर्क नहीं होगा।
अगर तुम बुद्ध के पास जा कर बाहर से जांच-पड़ताल करो तो क्या फर्क होगा? तुम्हारे ही जैसा भ्रांत! धूप पड़ेगी तो बुद्ध भी तो उठ कर छाया में बैठेंगे न जैसे तुम बैठते हो। काटा गड़ेगा तो बुद्ध भी तो पैर से निकालेंगे न, जैसा तुम निकालते हो। प्यास लगेगी तो बुद्ध भी तो पानी मांगेंगे न, जैसे तुम मांगते हो। भूख लगती है तो भिक्षा को मांगने जाते हैं। रात हो जाती है तो सोते हैं। अगर तुमने बाहर से ही जांचा तो बुद्ध में और तुम में क्या फर्क लगेगा? कोई फर्क न लगेगा। तुम जैसे भ्रांत, वैसे ही भ्रांत बद्ध भी मालूम पड़ेंगे।