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गांव में पता लगाने की कोशिश की कि वेद की प्रति कहां मिल सकेगी। पता चल गया। एक वृद्ध ब्राह्मण के पास ऋग्वेद की संहिता थी। उसने घर घेर लिया। और उसने ब्राह्मण से कहा कि वेद की संहिता मुझे सौंप दो अन्यथा घर, तुम, संहिता, सबको जला डाला जायेगा। ब्राह्मण ने कहा. इतने परेशान होने की जरूरत नहीं है, कल सुबह सौंप दूंगा, पहरा आप रखें। रात भर का समय क्यों चाहते हो? सिकंदर ने पूछा। उसने कहा कि रात भर का समय चाहता हूं ताकि पूजा-पाठ कर लूं पीढ़ियों से यह संहिता हमारे घर में रही है तो इसे ठीक से सम्मान से विदा देना होगा न! सुबह आप को भेंट कर देंगे। रात भर हम पूजा पाठ कर लें, सुबह आप ले लेंगे। सिकंदर ने सोचा. हर्ज भी कुछ नहीं है। पहरा तो लगा था, भाग कहीं सकता न था ब्राह्मण। लेकिन सिकंदर ने यह सोचा भी न था कि भागने के और कोई सूक्ष्म उपाय भी हो सकते हैं। यज्ञ की वेदी पर हवन किया और उसने ऋग्वेद का पाठ करना शुरू किया।
सुबह जब सिकंदर पहुंचा तो ऋग्वेद की संहिता का आखिरी पन्ना ब्राह्मण के हाथ में था। वह एक-एक पन्ना पढ़ता गया और आग में डालता गया। उसका बेटा बैठा सुन रहा था। जब सिकंदर पहुचा तो उसने कहा 'मेरे बेटे को ले जाएं, इसे ऋग्वेद कंठस्थ करवा दिया है। यह संहिता है। शास्त्र तो मैं दे नहीं सकता था, उसकी तो गुरु से मनाही थी, लेकिन बेटा मैं दे सकता हूं, इसकी कोई मनाही नहीं है!
सिकंदर को तो भरोसा न आया कि सिर्फ एक बार दोहराने से और पूरा ऋग्वेद बेटे को कंठस्थ हो गया होगा! उसने और पंडित बुलवाए, परीक्षा करवाई-चकित हुआ: वेद कंठस्थ हो गया था। स्मृति को व्यवस्थित करने के बहुत उपाय खोजे गए थे इसलिए बहुत दिनों तक तो भारत में हमने देद को लिखे जाने के लिए -स्वीकृति नहीं दी; जरूरत न थी। मनुष्य का मन इस भांति हमने व्यवस्थित किया था, ऐसी प्रणालियां खोजी थीं कि जरूरत नहीं थी कि किताब लिखी जाए; मन पर अंकित हो सकता था।
मन छोटी चीज नहीं है। मस्तिष्क बड़ी घटना है-संसार में सबसे बड़ी घटना है। जितने परमाणु हैं पूरे जगत में उतनी सूचनाएं तुम्हारे छोटे-से मस्तिष्क में समा सकती हैं। जितने पुस्तकालय हैं सारे जगत के, सुविधा और समय मिले तो एक आदमी के मस्तिष्क में सब समा सकते हैं। तुम अपने मस्तिष्क का कोई उपयोग थोड़े ही करते हो। श्रेष्ठतम दार्शनिक, विचारक, मनीषी, वैज्ञानिक भी दस-पंद्रह प्रतिशत हिस्से का उपयोग करता है, पच्चासी प्रतिशत तो ऐसे ही चला जाता है। इस पूरे मन को व्यवस्थित करने के उपाय थे, इस पूरे मन का उपयोग करने के उपाय थे। स्मृति का विज्ञान पूरा खोजा गया था। वेद कंठस्थ हो जाते थे यंत्रवत। जैसे टेप पर रिकार्ड हो जाता है, ऐसे ही स्मृति पर रिकार्ड हो जा सकते हैं। लेकिन इससे कोई ज्ञानी नहीं हो गया। वेद कंठस्थ हो गया, इसका अर्थ इतना ही हुआ कि मनुष्य यंत्रवत दोहरा सकता है तोता हो गया, ज्ञानी नहीं हो गया।
उद्दालक ने अपने बेटे श्वेतकेतु को कहा है कि बेटा एक बात स्मरण रखना, तू जा रहा है गुरु के घर, उसको जान कर लौटना जिसको जानने से सब जान लिया जाता है। बेटा बहुत परेशान हुआ।