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है। तुम्हारा शास्त्र तुम्हारे भीतर है, बाहर के शास्त्र मत ढोना ।
खड़े हैं दिग्भ्रमित से कब से कुछ प्रश्न दुखतें हैं बेचारों के पांव
याद है इन्हें पूरब पश्चिम, दक्षिण भूल गए उत्तर का गांव।
प्रश्न तो तुम्हारे खड़े हैं जन्मों से, उनके पैर भी दुखने लगे खड़े-खड़े। याद है इन्हें पूरब पश्चिम, दक्षिण भूल गए उत्तर का गांव।
भीतर है। ये पूर्ब जाते, पश्चिम जाते, वहीं उत्तर है, वहीं जाओ।
बस एक जगह भूल गए हैं - उत्तर का गांव। उत्तर तुम्हारे दक्षिण जाते भीतर कभी नहीं जाते। जहां से प्रश्न उठा है, एक झेन फकीर बोकोजू बोल रहा था । एक आदमी बीच में खड़ा हो गया और उसने कहा कि मैं कोन हूं इसका उत्तर दें। बोकोजू ने कहा 'रास्ता दो।' बोकोजू बड़ा शक्तिशाली आदमी था। भीड़ हट गयी, वह बीच से उतरा। वह आदमी थोड़ा डरने भी लगा कि यह उत्तर देगा कि मारेगा या क्या करेगा! और साथ में उसने अपना सोटा भी रखा हुआ था। वह उसके पास पहुंचा। उसने जा कर उसका कालर पकड़ लिया और सोटा उठा लिया और बोला कि आख बंद कर और जहां से प्रश्न आया है वहीं उतर। और अगर न उतरा तो यह सोटा है।
तो घबराहट में उस आदमी ने आख बंद की। शायद घबराहट में एक क्षण को उसकी विचारधारा बंद हो गयी। कभी-कभी अत्यंत क्तइठैन घड़ियों में विचार बंद हो जाते हैं। अगर अचानक कोई तुम्हारी छाती पर छुरा रख दे, विचार बंद हो जाते हैं। क्योंकि विचार के लिए सुविधा चाहिए। अब सुविधा कहा! ऐसी असुविधा में कहीं विचार होते हैं। कभी तुम कार चला रहे हो, अचानक दुर्घटना होने का मौका आने लगे, लगे कि गये, सामने से कार आ रही है, अब बचना मुश्किल है- विचार बंद हो जाते हैं। ये विचार तो सुख-सुविधा की बातें हैं। ऐसे खतरे में जहां मौत सामने खड़ी हो, कहां का विचार ! वह सोटा लिए - सामने खड़ा था तगड़ा संन्यासी, वह मार ही देगा ! वह बेचारा खड़ा हो गया। एक क्षण को विचार बंद हो गये। विचार क्या बंद हुए एक आभा उसके चेहरे पर आ गयी, एक मस्ती छा गई! वह तो डोलने लगा। उस फकीर ने कहा : ' अब खोल आख और बोल !' उसने कहा कि आश्चर्य, तुमने मुझे वहां पहुंचा दिया जहां मैं कभी अपने भीतर न गया था पूछता फिरता था। मैं कोन हूं? मैं कोन हूं? और हैरानी कि दूसरों से पूछता था! मैं कोन हूं इसका उत्तर तो मेरे भीतर ही हो सकता है। तुमने बड़ी कृपा की कि सोटा उठा लिया।
झेन फकीरों के संबंध में कहा जाता है कि कभी-कभी तो वे साधक को उठा कर भी फेंक देते हैं, छाती पर भी चढ़ जाते हैं।
इसी बोकोजू के संबंध में कथा है कि जब भी वह कुछ बोलता था तो वह एक अंगुली ऊपर उठा लेता था-उस एक अद्वय को बताने के लिए। तो इसकी मजाक भी चलती थी उसके शिष्यों में।