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आकाश का मौन ही ध्वनि है। ध्वनि की गति ही शब्द है शब्द की रति ही स्वर है स्वर की यति ही भास्वर है
भास्वर की प्रतीति ही ईश्वर है। आकाश का मौन। मौन को पकड़ो। जैसा आकाश का मौन बाहर है वैसा ही आकाश का मौन भीतर है। जैसा एक आकाश बाहर है वैसा भीतर है।
आकाश का मौन ही ध्वनि है। उसी को हमने ओंकार कहा, नाद कहा, अनाहत नाद कहा।
आकाश का मौन ही ध्वनि है। सुनो मौन को!
ध्वनि की गति ही शब्द है शब्द की रति ही स्वर है स्वर की यति ही भास्वर है
भास्वर की प्रतीति ही ईश्वर है। मौन ही सघन होते-होते ईश्वर बन जाता है। शास्त्रों में तो शब्द हैं। मौन तो स्वयं में है। अगर शास्त्र ही पढ़ो तो पंक्तियों के बीच-बीच में पढ़ना। अगर शास्त्र ही पढ़ो तो शब्दों के बीच-बीच खाली जगह में पढ़ना। अगर शास्त्र ही पढ़ना हो तो सूफियों के पास एक अच्छी किताब है वह खाली किताब है, उसमें कुछ लिखा हुआ नहीं है-उसे पढ़ना। और उसे खोजने की कोई जरूरत नहीं, खाली किताब कहीं से भी उठा लेना और रख लेना, उसको पढ़ना। खाली पन्ने को देखते-देखते शायद तुम भी खाली पन्ने हो जाओ। उस खालीपन में ही ईश्वर का अनुभव है।
'साक्षी-पुरुष, परमात्मा, ईश्वर, आशा-मुक्ति और बंध-मुक्ति के जानने पर मुझे मुक्ति के लिए चिंता नहीं है।'
विज्ञाते साक्षिपुरुषे परमात्मनि चेश्वरे।
नैराश्ये बंधमोक्षे च न चिंता मक्तये मम।। कहते हैं : साक्षी-पुरुष को जान लिया तो परमात्मा जान लिया, ईश्वर जान लिया। साक्षी-पुरुष को जान लिया तो आशा से मुक्ति हो गयी। बंध-मुक्ति को जान लिया साक्षी-पुरुष को पहचानते ही, कि बंधन भी भ्रांति थी और मुक्ति भी भांति है। जब बंधन ही भ्रांति थी तो मुक्ति तो भांति होगी ही। जब हम कभी बंधे ही न थे तो मुक्ति का क्या अर्थ? रात तुमने सपना देखा कि जेल में पड़े हो, हाथों में हथकड़ियां हैं, पैरों में बेड़ियां हैं। सुबह उठ कर जागे, पाया कि सपना देखा था। तो तुम यह थोड़े ही कहोगे कि अब जेल से छुटकारा हो गया कि हथकड़ियों-बेड़ियों से छुटकारा हो गया। वे तो कभी थी ही नहीं।