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कहां! प्रमाद का अर्थ होता है : मूर्छा। प्रमाद का अर्थ होता है : तंद्रा। प्रमाद का अर्थ होता है. बेहोशी। जो शून्यचित्त को अनुभव कर लिया है उसे प्रमाद कहां, बेहोशी कहां? वह तो परम साक्षित्व को उपलब्ध हो गया है।
प्रकृत्या शन्यचित्तो यः प्रमादादनावभावन। ऐसा पाठ मिलता है अनेक जगह। कहीं-कहीं बहुत मुश्किल से ठीक पाठ मिलता है। ठीक पाठ
प्रकृत्या शन्यचित्तो यः प्रमोदाद्भावभावन। खेल-खेल में जो भाव में इबता है: प्रमाद के कारण नहीं, प्रमोद के कारण।
'जो स्वभाव से शून्यचित्त है वह प्रमोद से विषयों की भावना करता है और सोता हुआ भी जागते के समान है, वह पुरुष संसार से मुक्त है।
__ प्रमोद ठीक है। प्रमोद का अर्थ है. लीला; खेल-खेल में। यही तो पूरब की बड़ी से बड़ी खोज है। दुनिया में बहुत धर्म हुए पैदा जैसा पूरब ने परमात्मा को समझा वैसा किसी ने नहीं समझा वैसी गहराई पर। पूछो. 'परमात्मा ने जगत क्यों बनाया?' तो सिर्फ पूरब के पास ठीक-ठीक उत्तर है : 'खेल-खेल में! लीलावशांत!' परमात्मा किसी कारण से जगत बनाए तो गलत बात हो जाएगी। क्योंकि कारण का अर्थ हुआ : कोई कमी हुई। कारण का अर्थ हुआ कि परमात्मा खाली था कुछ अड़चन हुई अकेला था।
कुछ धर्म कहते हैं. परमात्मा अकेला था, इसलिए संसार बनाया। तो परमात्मा भी अकेला नहीं रह सकता! तो फिर मनुष्य का तो वश क्या है! तो फिर परमात्मा ही जब दवैत खोजता है तो मनुष्य की क्या क्षमता है अद्वैत को पाने की? फिर अद्वैत असंभव है। तो जो धर्म कहते हैं, 'परमात्मा अकेला था, अकेलेपन से ऊबा, इसलिए संसार बनाया', गलत बात कहते हैं। वे आदमी के मन को परमात्मा पर आरोपित कर लेते हैं। उन्होंने अपने ही मन को फैला कर परमात्मा का मन समझ लिया। हम अकेले में परेशान होते हैं क्या करें, क्या न करें! कुछ चाहिए व्यस्तता, कुछ उलझाव, कहीं, जहां मन लग जाए! तो हम सोचते हैं कि परमात्मा ने भी ऐसे ही स्वात से ऊब कर जगत का निर्माण किया होगा। कुछ हैं जो कहते हैं. परमात्मा ने जगत बनाया, ताकि मनुष्य मुक्त हो सके। यह बात बड़ी मूढ़ता की मालूम पड़ती है। आदमी को बंधन में डाला ताकि आदमी मुक्त हो सके बंधन में ही क्यों डाला? -आदमी मुक्त था ही! संसार को बनाया ताकि तुम मुक्त हो सको यह तो बड़ी अजीब बात हुई कि कारागृह बनाया कि तुम मुक्त हो सको मुक्त तो तुम थे ही, कारागृह में डालने की जरूरत क्या थी? नहीं, इस बात में भी बहुत अर्थ नहीं है।
कारण में कोई अर्थ नहीं हो सकता, क्योंकि परमात्मा अकारण है; पूरा है, कोई कमी नहीं है; कोई अभाव नहीं है। सच्चिदानंद है। अकेलापन उसे खलता नहीं। निश्चित ही ऐसा होगा, क्योंकि हमने तो पृथ्वी पर भी ऐसे लोग देखे जो अकेले हैं और परम आनंद में हैं।
बुद्ध अपने बोधिवृक्ष के नीचे बैठे हैं-एकदम अकेले हैं! लेकिन कोई कमी नहीं है, सब पूरा है! महावीर स्वात में नग्न खड़े हैं पहाड़ी में, बिलकुल अकेले हैं। महावीर ने तो उस आखिरी दशा का नाम