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'जो स्वभाव से शून्यचित्त है, पर प्रमोद से, खेल-खेल में...।'
कभी-कभी तुम अपने छोटे बच्चे के साथ भी खेल-खेल में कुछ करते हो। तुम्हारा बेटा है, कुश्ती लड़ना चाहता है, बाप बेटे से कुश्ती लड़ता है जानते हुए कि यह बेटा जीत तो सकता नहीं फिर भी बेटे को जिता देता है। झट लेट जाता है, बेटा छाती पर बैठ जाता है और देखो उसका उल्लास! तुम खेल-खेल में हो और बेटा खेल-खेल में नहीं है; बेटा सच में मान रहा है कि जीत गया। वह चिल्लाता फिरेगा, घर भर में झंडा घुमाता फिरेगा कि पटका, चारों खाने चित कर दिया पिताजी को! उसके लिए बड़े गौरव की बात है। तुम खुद ही लेट गए थे। तुमने उसे जिता दिया था। तुम्हारे लिए खेल था।
__मैंने सुना है कि एक जर्मन विचारक जापान गया। वह एक घर में मेहमान था। घर के लोगों ने, घर के के मेजबान ने, जिसकी उम्र कोई अस्सी साल की थी, कहा कि आज सांझ एक विवाह हो रहा है मित्र के परिवार में, आप भी चलेंगे? उसने कहा. 'जरूर चलूंगा, क्योंकि मैं आया ही इसलिए हूं कि जापानी रीति-रिवाज का अध्ययन करूं, यह मौका नहीं छोडूंगा।' ।
वह गया। वहां देख कर बड़ा हैरान हुआ कि वहा गुड्डे-गुड्डी का विवाह हो रहा था छोटे -छोटे बच्चों ने विवाह रचाया था और बड़े-बड़े के भी सम्मिलित हुए थे। और बड़ी शालीनता से विवाह का कार्यक्रम चल रहा था। वह जरा हैरान हुआ। उसने कहा: 'बच्चे तो सारी दुनिया में खेलते हैं, गुड्डा-गुड्डी का विवाह रचाते हैं; मगर बड़ी उम्र के लोग सम्मिलित हुए, फिर जुलूस निकला बारात निकली, उसमें भी सब सम्मिलित हुए। वह रोक न पाया अपने को। घर आते से ही उसने कहा कि 'क्षमा करें! यह मामला क्या है? बच्चे तो ठीक हैं, बच्चे तो सारी दुनिया में ऐसा करते हैं; मगर आप सब बड़े-बूढ़े इसमें सम्मिलित हुए
तो उस के ने हंस कर कहा : 'बच्चे इसे असलियत समझ कर कर रहे हैं, हम इसे खेल-खेल में..| बच्चे इतने प्रसन्न हैं, साथ देना जरूरी है। कभी वे भी जागेंगे। और हमारे साथ रहने से उनका खेल उन्हें बड़ा वास्तविक मालूम पड़ता है।'
फिर उस बूढ़े ने कहा : और बाद में जिनको तुम असली विवाह कहते हो, असली दूल्हा-दुल्हन, वह भी कहीं खेल से ज्यादा है क्या? वह भी खेल है। यह भी खेल है। यह छोटों का खेल है, वह बड़ों का खेल है।
जागा हुआ पुरुष भी खेल में सम्मिलित हो सकता है। जब स्वयं परमात्मा खेल में सम्मिलित हो रहा है तो जागा हुआ पुरुष भी खेल में सम्मिलित हो सकता है।
बोधिधर्म जब चीन गया-एक महान बौद्ध भिक्षु! बुद्ध के बाद महानतम! -तो चीन का सम्राट उसका स्वागत करने आया था। लेकिन देखा तो बड़ा हैरान हो गया। यह बोधिधर्म तो पागल मालूम हुआ। वह एक जूता सिर पर रखे था और एक पैर में पहने हुए था। सम्राट थोड़ा विचलित भी हुआ। -यह तो फजीहत की बात है। सम्राट का पूरा दरबार मौजूद था। अनेक मेहमान, प्रतिष्ठितगण मौजूद थे। सब जरा परेशान हो गये कि यह किस आदमी का स्वागत करने हम अगर हैं? यह तो पागल