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अर्थ है। फिर जिनकी बस्ती में तुम हो, उनके साथ सम्मिलित हो जाओ।
एक बड़ी प्रसिद्ध कहानी है खलील जिब्रान की। एक गांव में एक जादूगर आया। उसने गांव कुएं में मंत्र पढ़कर कोई एक चीज फेंक दी और कहा. जो भी इसका पानी पीएगा, पागल हो जाएगा। गांव में दो ही कुएं थे- एक राजा के घर में था और एक गांव में था। सारा गांव तो पागल हो गया, राजा बचा और उसका वजीर बचा। राजा बड़ा खुश था कि हम अच्छे बचे, अन्यथा पागल हो जाते। लेकिन जल्दी ही खुशी दुख में बदल गयी, क्योंकि सारे गांव में यह खबर फैल गई कि राजा पागल हो गया। सारा गांव पागल हो गया था। अब पागलों का गांव, उसमें राजा भर पागल नहीं था - स्वाभाविक था कि सारा गांव सोचने लगा, इसका दिमाग कुछ ठीक नहीं है, कुछ गड़बड़ है। राजा ने अपने वजीर से कहा कि. 'यह तो बड़ी मुसीबत हो गयी! ये पगले खुद तो पागल हुए हैं।' लेकिन इन्हीं में उसके सिपाही भी थे, सेनापति भी थे, उसके रक्षक भी थे। उसने वजीर से पूछा : 'हम क्या करें? यह तो खतरा है।'
सांझ होते-होते पूरी राजधानी उसके महल के आसपास इकट्ठी हो गयी और उन्होंने कहा 'हटाओ इस राजा को! हम स्वस्थ - चित्त राजा चाहते हैं।' राजा ने कहा : 'जल्दी करो कुछ ! क्या करना है?" वजीर ने कहा 'मालिक, एक ही उपाय है कि चल कर उस कुएं का पानी पी लें।' भागे जा कर कुएं का पानी पी लिया। उस रात गांव में जलसा मनाया गया और लोग खूब नाचे कि अपना राजा स्वस्थ हो गया। वे भी पगला गए ।
यह जो दुनिया है, पागलों की है। यहां सब मूर्च्छित हैं। यहां जाग्रत पुरुष भी तुम्हारे बीच जीए तो तुम्हारी भाषा के अनुसार चलना होता है। तुम्हारे बीच जीता है तुम्हारे नियमों को पालना पड़ता है। तुम तो पालते हो अपने नियमों को बड़ी गंभीरता से, वह उन नियमों का पालन करता है बड़े खेल-खेल में, प्रमोदवशांत!
'जो स्वभाव से शून्यचित्त है, विषयों की भावना भी करता है तो प्रमोद से, और सोता हुआ भी जागते के समान है।'
तुम उसे सोता हुआ भी पाओ तो सोया हुआ मत समझना । तुम जब जागे हो तब भी सोए हो। वैसा पुरुष जब सोया है, तब भी जागा है।
इसलिए तो कृष्ण ने गीता में कहा है : 'या निशा सर्वभूताया, तस्यां जागर्ति संयमी ।' जो सबके लिए रात है, जहां सब सो गए हैं, वहा भी संयमी जागा हुआ है। तुम्हारे साथ सो भी गया हो तुम्हारी नींद में खलल न भी डालनी चाही हो, तो भी जागा हुआ है। किसी अंतलोक में उसका प्रकाश का दीया जल ही रहा है।
जनक कहते हैं. वह पुरुष सोया हुआ भी जागते के समान है।
एक बात तो हम जानते हैं कि हम जागते हुए भी सोए हुओं के समान हैं तो दूसरी बात भी बौद्धिक रूप से कम से कम समझ में आ सकती है कि इसका विपरीत भी हो सकता है।
तुम्हारी आंखें खुली हैं, पर तुम जागे हुए नहीं हो। तुम्हें जरा-सी बात मूर्च्छा में डाल देती है।