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रहते, फिर भी दुख को बदलते नहीं। दुख से परिचय हो जाता है, संबंध जुड़ जाता है। अगर अचानक सुख तुम्हारे द्वार पर आ जाए, तो तुम मेरी मानो, पक्की मानो, तुम द्वार बंद कर लोगे। तुम कहोगे : सख, पहली तो बात होता ही नहीं सख दनिया में। दसरी बात, धोखा होगा। और तीसरी बात, अब बामुश्किल तो दुख से राजी हो पाए हैं, अब मत उखाड़ी। किसी तरह जम पाए हैं। किसी तरह संबंध बन गया है, अब यह नया और झंझट कोन ले! फिर से कोन शुरुआत करे!
लोग कारागृह मैं भी आदी हो जाते हैं रहने को, फिर उन्हें बाहर अच्छा नहीं लगता।
मैं मध्य प्रदेश में कुछ वर्षों तक था, तो वहां की सेंट्रल जेल में जाता था। गवर्नर मेरे एक मित्र थे, तो उन्होंने कहा कि आप बाहर के कैदियों को कब तक समझाएंगे, भीतर के कैदियों को भी समझाएं। मैंने कहा, ठीक, मैं आऊंगा। तो वहां पहली बार गया जेल में, तो मैंने जो लोग देखे; दुबारा गया कुछ महीने बाद, वही लोग, वही लोग। बरस बीतते गए। कभी कोई छूट जाता, फिर महीने दो महीने के भीतर वापिस जेल में आ जाता। मैंने एक के कैदी से पूछा, तू कितनी बार जेल में आया है? उसने कहा, यह मेरा तेरहवां तेरहवीं बार आया हूं।
'तो बाहर रहने में अड़चन क्या है तुझे?'
कहता, बाहर अच्छा नहीं लगता। सब मित्र-प्रियजन यहीं हैं। अपने वाले सब यहीं हैं। बाहर बड़ा अजनबीपन-सा लगता है। किससे बोलो? किससे बात करो? फिर कहा, हजार झंझटें हैं बाहर। रोटी-रोजी कमाओ, मकान ढूंढो, रहने का इंतजाम करो। यहां सब सुविधा है। न रोटी-रोजी की फिक्र, न राशन लेने लाइन में खड़े होना पड़ता है, न सुबह चार बजे से पानी भरने के लिए नल पर खड़े रहो। सब यहां सुविधा है। यह तो लाखों का महल है, वह कहने लगा। डॉक्टर, जब जरूरत तो डॉक्टर आता है। इतनी सारी सुविधा के लिए ये थोड़ी-सी जंजीरें सहना कुछ महंगा सौदा नहीं। फिर शुरू-शुरू में आया था तो बुरा भी गलता था, अब तो सबसे दोस्ती भी हो गई है। पुलिस वाले भी पहचानते हैं, अपने वाले हैं, जेलर भी जानता है। यह अपना घर है। अब कहां जाना? छोड़ देते हैं, तो मैं महीने दो महीने में फिर उपाय करके भीतर आ जाता हूं।
कारागृह में भी तुम ज्यादा देर रह गए, तो घर बन जाता है। और तुम जिस कारागृह में हो, इसमें कई जन्मों से हो। इसलिए अगर कभी तुम्हें बाहर के पक्षियों के गीत बुलाएं, जो मुक्त हैं, अगर उनकी वाणी तुम्हें पुकारे, तो तुम इन जंजीरों को तोड़ने की हिम्मत करना।
__और मजा तो यह है कि इस कारागृह में कोई दूसरा जंजीरों पर पहरा नहीं दे रहा है, तुम ही पहरा दे रहे हो। कोई दूसरा तुम्हें रोक नहीं रहा है। कोई संतरी तुम्हारे सिर पर नहीं खड़ा है, तुम्ही रोक रहे हो। यहां तुम्हारे दुख का कारण तुम हो। कभी अगर तुम्हें आकाश में उड़ते पक्षियों का इशारा मिल जाए, तो मैं तुमसे कहता हूं : द्वार खुले हैं तुम्हारे पिंजरे के किसी ने बंद किया नहीं।
संन्यास का इतना ही अर्थ है कि तुम नए को प्रयोग करने को तैयार हो। संन्यास का इतना ही अर्थ है कि तुम पुराने दुख के साथ संबंध तोड्ने की हिम्मत रखते हो। संन्यास का इतना ही अर्थ है कि तुम जीवन को एक नई शैली, एक नया परिधान देने को राजी हो; तुम एक प्रयोग करने को