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गगन की निर्बंध बहती वायु
प्रतिपल पूछती है
कब गिरेगी टूट तेरी
देह की दीवार
और तू हो लीन मुझमें
फिर बनेगा मुक्त?
कोन मिलनातुर नहीं है!
सर्वव्यापी विश्व का व्यक्तित्व
प्रतिक्षण पूछता है
कब मिटेगा बोल तेरा
अहं का अभिमान
और तू हो लीन मुझमें
फिर बनेगा पूर्ण ?
कोन मिलनातुर नहीं है!
परमात्मा भी मिलने को आतुर है। तुम्हीं नहीं खोज रहे हो उसे वह भी खोज रहा है। तुम्हीं नहीं दौड़ रहे उसकी तरफ वह भी दौड़ रहा है। अगर यह आग एक ही तरफ से लगी होती तो मजा ही न था। यह आग दोनों तरफ से लगी है। तो ही तो मजा है, तो ही तो इतना रस है ।
संन्यास का मैंने निमंत्रण दिया है; क्योंकि जो मेरे पास है, मैं वह बांटना चाहता हूं। तुम ले लोगे, तो मैं तुम्हारा कृतश! तुम ले लोगे, तो मेरा धन्यवाद तुम्हें। जब कभी मन में ऐसा भाव उठे छलांग लगाने का, तो झिझकना मत, क्योंकि कभी-कभी ऐसे हिम्मत के क्षण आते हैं। उस हिम्मत के क्षण में घटना घट जाए तो घट जाए; अन्यथा तुम टाल गए; सोचा, कल कर लेंगे। कल का क्या भरोसा है!
बुद्ध एक गांव से तीस बार निकले चालीस वर्षों की यात्रा में और एक आदमी बार-बार सोचता था जाना है! लेकिन कभी घर मेहमान आ गए, कभी पत्नी बीमार हो गई। अब पत्नियों का कोई भरोसा थोड़े ही है, कब बीमार हो जाएं! ऐन वक्त पर हो जाती हैं। कभी दूकान पर ज्यादा ग्राहक, कभी खुद को सिरदर्द हो गया। कभी जा ही रहा था, दूकान बंद ही कर रहा था कि कोई मित्र आ गया वर्षों के बाद। ऐसे अड़चन आती रही, आती रही। सोचा, अगली बार जब आएंगे..। ऐसा तीस बार बुद्ध आए गांव और तीस बार वह आदमी चूक गया।
चौंकना मत सोचना मत कि तीस बार बहुत हो गया। तुम भी कम से कम तीन हजार बार चूके हो। कितने जन्मों से तुम यहां हो, कितने बुद्धों से तुम्हारा मिलना न हुआ होगा जीवन के पथों पर बहुत बार बुद्धों के आस-पास गुजर गए होओगे, लेकिन तुमने कहा 'कल! फिर मिल लेंगे, अभी जल्दी क्या? अभी और दूसरे काम जरूरी हैं, वह पहले निपटा लेना है।'