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न पड़ी। प्रेम के मार्गी को यह बात कठिन मालूम पड़ेगी। यह तो प्रेम के मार्गी को अहंकार की घोषणा मालूम पड़ेगी। यह तो हद दर्जे का कुफ्र यह तो आखिरी काफिरता है। इससे बड़ा और कोई पाप नहीं हो सकता।
समझने की कोशिश करना, क्योंकि भक्ति की पूरी व्यवस्था और है। वहां तो मैं' को गलाना है। वहां तो कहना है किसी दिन कि मैं नहीं हूं तू ही है।
जलालुद्दीन रूमी की प्रसिद्ध कथा है। प्रेमी आया प्रेयसी के द्वार पर, दस्तक दी। भीतर से पूछा प्रेयसी ने, 'कोन है? कोन खटखटाता है द्वार?' प्रेमी ने कहा, 'मैं हूं तेरा प्रेमी । पहचाना नहीं ?' भीतर सन्नाटा हो गया। बड़ा उदास सन्नाटा हो गया। कोई उत्तर न आया। प्रेमी जोर से खटखटाने लगा कि 'क्या तू मुझे भूल गई?' प्रेयसी ने कहा, ' क्षमा करो, इस घर में दो के रहने के लायक जगह नहीं। दो यहां न समा सकेंगे। प्रेम गली अति सीकरी, तामें दो न समाए। और तुम कहते हो, मैं हूं तेरा प्रेमी ! लौट जाओ अभी! जब पक जाओ, लौट आना।'
प्रेमी चला गया, जंगल पहाड़ों में भटकता, ध्यान करता, पूछता, रोता, गाता, सोचता, विचार करता–कैसे? कैसे पाऊं प्रवेश ? अनेक दिन आए-गए, चांद ऊगे - बुझे, सूरज निकला - डूबा, महीने - वर्ष बीते-तब एक दिन प्रेमी वापिस लौटा। द्वार पर दस्तक दी। प्रेयसी ने पूछा, 'कोन!' प्रेमी ने कहा, अब मत पूछो, अब तू ही तू है। कहते हैं, द्वार खुल गए, तत्क्षण द्वार खुल गए ! ये द्वार परमात्मा के द्वार हैं।
तो प्रेम में समर्पण मार्ग है- स्वयं को जला डालना, राख कर डालना। सत्य में निखारना है, संघर्ष है, सब बुराई काटनी है और आत्यंतिक रूप से 'पर' से सारे संबंध तोड़ लेने हैं, असंबंधित, असंग हो जाना है। लेकिन चमत्कार तो यही है कि दोनों एक ही जगह पहुंच जाते हैं। कैसे पहुंच जाते हैं जब 'तू, गिर जाता है ज्ञानी का, तो 'मैं बच नहीं सकता। क्योंकि 'मैं' और 'तू साथ - साथ बचते हैं। मैं और 'तू एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। तुम कैसे कहोगे कि मैं हूं जब तू न रह? जब ज्ञानी का 'तू, गिर गया, तो 'मैं' को कैसे बचाएगा? 'मैं बच नहीं सकता। बिना 'तू के सहारे 'मैं बच नहीं सकता। मैं का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता। जब 'तू है ही नहीं, तो 'मैं' का क्या अर्थ है? क्या प्रयोजन है? किसे कहोगे 'मैं'? 'मैं' हम उसी को कहते हैं न, जो 'तू, के विपरीत है, जो 'तू से भिन्न है, जो 'तू से अलग
है।
तुमने अपने घर के आसपास बागुड़ लगा रखी है, दीवाल बना रखी है, लेकिन वह पड़ोसी के कारण है। अगर पड़ोसी है ही नहीं तो किसके लिए बागुड़ लगाते हो? अगर सोचो, तुम अकेले होते पृथ्वी पर र तो घर की सीमा बनाते ? किसके लिए बनाते? किससे बनाते ? सीमा के लिए दो चाहिए। एक से 'सीमा नहीं बनती- पड़ोसी चाहिए, अन्य चाहिए, पर चाहिए । जब 'तू ही गिर गया, तो 'मैं कैसे बचेगा?
तो ज्ञानी गिराता है 'तू को और अंत में जब 'तू बिलकुल गिर जाता है, बैसाखी गिर जाती है, तब अचानक देखता है कि उसी के साथ 'मैं' भी गिर गया - शून्य रह जाता है।